________________ श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * श्रुत ये दोनों परोक्ष ज्ञान है / इन्द्रियोंकी सहायतासे प्राप्त ज्ञानको 'परोक्ष ' और इन्द्रियोंकी सहायताके बिना, आत्मामेंसे ही सीधे प्रकट होते ज्ञानको 'प्रत्यक्ष' शब्दसे पहचाना जाता है। तात्त्विक रूपसे पाँच ज्ञानके दो प्रकार बनते हैं-(१) छाद्मस्थिक और (2) क्षायिक / इनमें प्रारंभके चार ज्ञानको 'छाद्मस्थिक' और अंतिम केवल एकको 'क्षायिक' कहा जाता है / छाद्मस्थिक ज्ञानको कर्मशास्त्रकी भाषामें अगर कहा जाये तो वह 'क्षायोपशमिक' ज्ञान हैं और यह ज्ञान कर्मसे आच्छादित हैं। इसमें सिर्फ क्षायिक ज्ञान ही एक मात्र विना कर्मावरण होता है / और उत्तरोत्तर ये ज्ञान अधिकाधिक विकासप्रकाशवाले हैं। . मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल इन पाँचों ज्ञानमें से पाँचवाँ केवलज्ञान आजसे करीब 2427 सालोंसे ( जंबूस्वामी मोक्षमें जाते ही) विच्छेद हुआ है। अब इस कलियुगमें वह किसीको प्राप्त होगा ही नहीं। इतना ही नहीं, चौथा मनःपर्यव. भी करीवन् 2427 सोलोंसे लुप्त हुआ है। शेष तीन ज्ञानोंमेंसे अवधि भी अब तो प्रायः लुप्त-विच्छेद जैसा है, फिर भी उसका थोड़ा-थोड़ा प्रकाश जरूर विद्यमान है, जो कुछ ही व्यक्तियोंमें क्वचित ही देखा जाता है। आज कल बिना कोई दैविक शक्ति दूरके पदार्थका जिसे ज्ञान होता है, यह सब ऐसे ज्ञानबलसे ही संभवित होता है। मतिज्ञान-इन्द्रिय, अनिन्द्रिय अथवा दोनों संयुक्त रूप निमित्तोंसे उत्पन्न तथा योग्य प्रदेशमें आये हुए पदार्थादिकका अपनी शक्तिके अनुसार ( अर्थरहित ) बोध करानेवाला जो ज्ञान है उसे मतिज्ञान कहा जाता है। शास्त्रमें इसी ज्ञानको ‘आभिनियोधिक' शब्दसे दर्शाया गया है / मतिसे ही बुद्धि, स्मृति प्रत्यभिज्ञान, चिन्ता, अनुमानका ग्रहण होता है। बुद्धिकी सहायतासे हम सब हिताहितका अथवा प्रवृत्ति-निवृत्तिका विचारादि जो कर सकते हैं उसमें मन और (कम-अधिक मात्रामें ) इन्द्रियाँ भी कारणभूत है ही / यह ज्ञान आत्माको सीधा प्राप्त होता नहीं है, लेकिन बीचमें इन्द्रियाँ और मन रूप दलाल ( माध्यम )की जरूरत रहती है / इस प्रकार ज्ञाता और ज्ञेय इन दोनोंके बीच संबंध 608. इसमें उस अपेक्षासे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष भेद है जरूर, लेकिन वह इन्द्रियादि सापेक्ष है, आत्मप्रत्यक्ष नहीं है / 609. दैविक शक्तिसे या उपासना बलसे ज्ञात होता है लेकिन उपर्युक्त कारणसे नहीं होता / 610. इसका विग्रह सीधा होता नहीं है लेकिन मतिश्च सा शानं च इति मतिज्ञानम् / पाँचों नामोंमें इस प्रकार करें /