________________ 66 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी * [ गाथा 11-12 सर्वार्थसिद्ध विमानके देवोंको सिद्धान्तकारोंने निश्चयपूर्वक एकावतारी बताये हैं / [9-10-103 ] अवतरण-अब वैमानिक देवियाँ कितने प्रकारकी हैं ? तथा उनकी जघन्य और उत्कृष्ट आयुष्य-स्थिति कितनी है यह कहा जाता है परिगहिआणियराण य, सोहम्मीसाण-देवीणं / / 11 / / पलियं अहियं च कमा, ठिई जहन्ना इओ य उक्कोसा / पलियाई सत्त-पन्नास, तह य नव पंचवन्ना य // 12 // - गाथार्थ-सौधर्म तथा ईशान देवलोककी परिगृहीता तथा अपरिगृहीता देवियोंका जघन्य आयुष्य अनुक्रमसे पल्योपम तथा साधिक (कुछ अधिक) पल्योषम प्रमाण जाने / उनका उत्कृष्ट आयुष्य सौधर्म देवलोककी परिगृहीता देवीका सात पल्योपम और अपरिगृहीता देवीका पचास पल्योपम प्रमाण उत्कृष्ट आयुष्य जानें / ईशान देवलोककी परिगृहीता देवीका नव पल्योपम और अपरिगृहीताओंका पचपन पल्योपम प्रमाण उत्कृष्ट आयुष्य समझें // 12 // विशेषार्थ-देवगतिमें देवियोंकी उत्पत्ति भवनपति निकायसे लेकर ईशान देवलोक तक अर्थात् भवनपति निकाय, व्यन्तर निकाय, ज्योतिषी निकाय और वैमानिक निकायमें सौधर्म तथा ईशान इन दो 101 देवलोकों तक ही होती है। सनत्कुमारसे आगेके देवलोकों में देवियों की उत्पत्ति होती नहीं है, क्योंकि ऊपरके निकायके देव अल्पविषयी हैं, अतः वहाँ देवियोंकी उत्पत्ति नहीं होती। वैमानिक निकायके प्रथम दो देवलोकोंमें देवियाँ दो प्रकारकी होती हैं। एक 'परिगृहीता' और दूसरी 'अपरिगृहीता'। परिगृहीताको १०२कुलांगना अर्थात् कुलीन 101. एक इन्द्रके भवमें इन्द्रकी अपनी कितनी देवियों उत्पन्न होकर मृत्यु पाती हैं ? इस सम्बन्धमें कहा गया है कि 'दो कोडाकोडीओ, पंचासी कोडी लक्खइगसयरी / कोडीसहस्स चउकोडी, सयाण अडवीस कोडीणं // 1 // सत्तावन्नं लक्खा चउदस, सहस्सा य दुसय, पंचासी / इय संखा देवीओ चयंति इंदस्स जम्मंमि // 2 // अर्थ-एक इन्द्रके भवमें दो करोड़ाकरोड़, पचासी लाख करोड़, इकहत्तर हजार करोड़, चारसौ करोड़, अठाईस करोड़, सत्तावन लाख, चौदह हजार, दो सौ पचासी-(२८,५७१४२८,५७,१४,२८५ ) इतनी देवियोंकी संख्या उत्पन्न होकर च्यवन-मृत्युको प्राप्त करती हैं। 102. कुलांगना समान, अर्थात् कुलकी भूषणरूप / जिस तरह मनुष्यलोकमें जो स्त्रियाँ स्वकीय जीवनको