________________ * श्वासोच्छ्वासका स्वरुप और उसका पदार्थपन * * 251 . .. ऊसा-उच्छवास- नवे उच्छ्वास प्राणकी व्याख्या देता है। इसका पूरा नाम 'श्वासोच्छ्वास' है। लेकिन गाथा छंदका मेल करने अथवा तो उच्छवास ऊर्ध्वगमनशील है। श्वासोच्छवासमें लेने-छोड़नेकी दोनों क्रियाएँ अन्तर्गत होने पर भी लेनेकी क्रियाका विशेष प्राधान्य है। मनुष्य जीवित है या नहीं ? इसका स्पष्ट और शीघ्र ख्याल यह सब उच्छ्वासके ही आभारी होनेसे 'उसा' का किया गया संक्षिप्त प्रयोग गलत नहीं कहलायेगा। और उच्छवास लिया तो छोड़नेका तो है ही अतः उच्छवासके बाद निःश्वास तो अर्थापत्ति न्यायसे स्वयं आ ही जाती है / . श्वास और उच्छवासकी दिखाई देती जो क्रिया है उसे प्राण ही कहा जाएगा। उसकी प्रक्रिया ऐसी है कि श्वासोच्छ्वास लेनेमें उपयोगी ऐसे (श्वास वर्गणाके ) पुद्गलोंको ग्रहण करने, ग्रहण के बाद श्वासोच्छ्वासरूपमें परिणत करने (या अनुकूल करने) फिर जरा अवलंबन लेकर उस श्वासोच्छवासको लेने छोड़नेके व्यापारके द्वारा विसर्जन करनेको प्राण कहा जाता है / . यह सब कैसे बनता है ! तो आठ कर्मों से छठे नाम कर्ममें श्वासोच्छ्वास नामका एक गौण कर्म है। इस कर्मके उदयसे जीवोंके उच्छवासकी लब्धि शक्ति प्राप्त होती है। यह उच्छ्वास लब्धि या शक्तिसे जीव श्वासोच्छ्वासके पुद्गलोंको उच्छ्वास रूपमें परिणत करके श्वासोच्छ्वास लेकर छोड सके वैसे प्रकारकी योग्यतावाले बना सकते हैं। अब उस योग्यता प्राप्त पुद्गलों या शक्तिको उपयोगमें लेनी है। क्योंकि उसका उपयोग उच्छवास-निःश्वासरूपमें करनेका है, और यह व्यापार अन्य बल-शक्तिकी सहायके बिना नहीं होता। इसके लिए जीवको श्वासोच्छवास पर्याप्ति-शक्तिकी अनिवार्य जरूरत पड़ती है। इस तरह लब्धि और पर्याप्ति दोनोंके सहयोगसे 'प्राण' (श्वासोच्छ्वासकी क्रिया) उत्पन्न होती है। . श्वासोच्छवास लब्धि न होने पर श्वासोच्छवास लेनेकी शक्ति या योग्यता होने 545. छलांग या कुदान लगानी हो तो प्रथम कमरके द्वारा शरीरको जरा पीछे खिंचकर शरीर संकोचनके द्वारा नया बल जागृत करनेके बाद ही छलांग लगाते हैं, सामान्यतः रेलगाडी भी पीछे धक्का लगानेके बाद ही आगे बढ़ती है। बाणको प्रक्षिप्त करना हो तो उसे प्रथम कानकी तरफ पीछे खिंचकर ही बादमें छोडा जाता है / उस तरह श्वासोच्छ्वासके पुद्गलोंको भी तथाप्रकारके प्रयत्न द्वारा अवलंबन लेकर उन पुद्गलोंके अवलंबनके द्वारा ही उत्पन्न हुई विसर्जन योग्य शक्तिके द्वारा श्वास छोडनेके साथ साथ उन पुद्गलोंका विसर्जन हो जाता है। विसर्जनको अगर साध्य मानें तो अवलंबनको साधन कहा जा सकता।