________________ * 236 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * 1. मृत्युके बाद मृतकमें पांचों इन्द्रियाँ विद्यमान हैं, तो मृतकको भी इन्द्रियजन्य बोध होना चाहिए, लेकिन वैसा नहीं दीखता / उस वक्त एक मी विषयका अनुभव-अवबोध नहीं होता। अतः विषयोंका भोक्ता या दृष्टा अगर कोई है तो चैतन्यवान ऐसी 'आत्मा ही है। 2. उपरांत किसी विशिष्ट आत्माके मोहादिकके आवरण अमुक प्रमाणमें दूर होने पर आत्मप्रत्यक्ष अवधि आदि ज्ञान पैदा हो तब वह आत्मा इन्द्रियोंकी सहायके बिना ही विषयोंको जानती है, अनुभव करती है। अतः इन्द्रियाँ ही जानती हैं, ऐसा कहना बरावर नहीं है। ___साथ ही एक सामान्य नियम ऐसा है कि, जिस मनुष्यने जिस वस्तु या विषयका अनुभव किया हो, भविष्यमें वही वस्तु या विषयका स्मरण वही मनुष्य कर सकता है, परंतु इन्द्रियाँ नहीं। और अगर इन्द्रियाँ ही जानती हैं, ऐसा कहेंगे तो-अमुक समयके बाद इन्द्रियोंका नाश हो जाने पर भूतकालमें इन्द्रियजन्य जो स्मरण उपस्थित हुए थे उनका मी नाश हो जाना चाहिए, लेकिन वह तो नहीं होता। अतः विषयावबोध करनेवाली इन्द्रियाँ नहीं लेकिन आत्मा ही है और यही युक्तियुक्त और संगत है / यह इन्द्रिय कैसे प्राप्त होती है ? जातिनामकर्म, अंगोपांग नामकर्म और निर्माण / नामकर्मके उदयसे प्राप्त होती है। पांच प्राण रूप पांच इन्द्रियोंके प्रकार ___पांच इन्द्रियोंके नाम (1) चमडी (2) जीभ (3) नाक (4) आँख और (5) कान है। इन्द्रियोंके मुख्य दो भेद हैं। (1) द्रव्येन्द्रिय और (2) भावेन्द्रिय / प्रथम द्रव्येन्द्रियके चार उपप्रकार द्रव्येन्द्रियके पुनः दो भेद पड़ते हैं। निवृत्ति और उपकरण / अर्थात् निवृत्ति इन्द्रिय और उपकरण इन्द्रिय / दोनोंके पुनः वाह्य और आभ्यन्तर अर्थात् बाह्य निवृत्ति इन्द्रिय और आभ्यन्तर निवृत्ति इन्द्रिय / वाह्य उपकरण और आभ्यन्तर उपकरण इन्द्रिय ऐसे उपभेद हैं। - 529. अन्य स्थल पर दस इन्द्रियोंका उल्लेख आता है / लेकिन वहाँ पर ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियोंके हिसाबसे वे गिनी गई हैं / उपरोक्त पांच ये ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। और वाक्, हाथ, पग, मुदा और लिंग ये क्रियाकारक होनेसे इन्द्रियोंके रूपमें मानकर भेद दर्शन कराया है / 530. द्रव्येन्द्रियाँ न हों तो * 'यह एकेन्द्रिय यह दोइन्द्रिय' ऐसा व्यवहार नहीं हो सकता / इस व्यवहारमें भावेन्द्रियको कारण मानें तो तो लब्धिहन्द्रियसे हरेक जीव पंचेन्द्रिय होता है। और फिर तो जातके सारे जीवौको पंचेन्द्रिय ही कहने पड़ते।