________________ * पर्याप्ति संबंधी बारहवाँ परिशिष्ट * भी जीवनपर्यंत-ग्रहण किए जानेवाले औदारिक आदि पुद्गलोंमें आहार पर्याप्ति द्वारा खल और रसरूपमें विभाजन होनेके बाद सात धातुरूपमें उन पुद्गलोंका परिणमन उस शक्ति द्वारा होता रहे। इस शक्तिका नाम शरीर पर्याप्ति। शरीर पर्याप्तिरूप शक्ति प्रकट करनेका काल उत्पत्तिके प्रथम समयसे अन्तर्मुहूर्त तकका है। और प्रकट हुई शक्तिके फल स्वरूप ग्रहण होते आहार योग्य पुद्गलोंको सात धातुरूपमें परिणत करनेका कार्य उत्पत्तिके बाद अन्तर्मुहूर्त पश्चात् जीवनपर्यंत है। ___ इसी तरह इन्द्रिय पर्याप्ति नामकर्मके उदयका असर उत्पत्तिके प्रथम क्षणसे दो अन्तर्मुहूर्त तक पहले क्षणसे ग्रहण होते और खल-रसरूपमें अलग पडे हुए तथा सात धातुरुपमें परिणत औदारिक पुदगलों पर इस प्रकार चालू रही कि अंतर्मुहूर्त पूर्ण होने पर सात धातुरूपमें परिणत और आगे जीवनपर्यंत सात धातुरूपमें परिणमन प्राप्त करनेवाले पुद्गलोंका अभ्यन्तर द्रव्येन्द्रियरूपमें परिणमन हो ऐसी शक्ति उन पुद्गलोंमें प्रकट हुई। इस शक्तिका नाम इन्द्रिय-पर्याप्ति। इसी तरह उत्पत्ति के प्रथम समयसे उच्छ्वास लब्धिके साथ उच्छवास नाम कर्मोदयके कारण श्वासोच्छवास वर्गणाके पुदगलोंका ग्रहण तो चालू ही था / साथ साथ उच्छवास पर्याप्ति नामकर्मका उदय भी चालू था। आहार पर्याप्तिका एक समय, शरीर पर्याप्तिका एक अन्तर्मुहूर्त और इन्द्रिय पर्याप्तिका दूसरा एक अन्तर्मुहूर्त पसार होनेके बाद तीसरा एक अन्तर्मुहूर्त-इतना काल पसार हुआ तब उच्छवास पर्याप्ति नाम कर्मोदयके कारण ग्रहण किए गए तथा आगे होनेवाले उच्छ्वास वर्मणाके पुद्गलोंमें उच्छवासरूप परिणमन, बादमें अवलंबन लेकर, निःश्वास रूपमें विसर्जन करनेकी जो शक्ति प्रकट हई उसका नाम श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति। ___ पाँचवीं भाषा पर्याप्ति और छठी मनःपर्याप्तिमें इसी तरह व्यवस्था समझनेकी है। फक्त शरीर. पर्याप्तिमें एक अन्तर्मुहूर्त्तका काल, इन्द्रिय पर्याप्तिका उत्पत्तिके प्रथम क्षणसे दो अन्तर्मुहूर्त, श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिके लिए उत्पत्तिके प्रथम समयसे तीन अन्तर्मुहूर्त, इस तरह भाषा पर्याप्ति के लिए चार अन्तर्मुहूर्त और मनःपर्याप्तिके लिए उत्पत्तिके प्रथम समयसे पांच अन्तर्मुहूर्त जाने। . इस तरह ‘पर्याप्तियों की विशिष्ट समझ पूर्ण होती है।