________________ , 224 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * होते ही श्वासोच्छवास 'प्राण' नामके भेदका सर्जन होता है इसीलिए पर्याप्तिको कारणरूप और प्राणोंको उसके कार्य रूप माने हैं। जो बात आगेकी गाथामें आनेवाली ही है। ___5. भाषा पर्याप्ति पूर्ण होने पर जीवको बोलनेकी सामर्थ्य प्रकट हो जाती है / 6. मनःपर्याप्ति पूर्ण होने पर विचार, चिंतन, मनन आदि मनके व्यापार करनेकी शक्ति प्राप्त कर लेता है और परिणाम स्वरूप 'मनोबल' नामका ( दस प्राणमेंसे एक) प्राण जन्म लेता है / शरीर पर्याप्तिसे 'कायबल' नामका प्राण / इन्द्रिय पर्याप्तिसे पांच इन्द्रिय रूप पांच प्राण। भाषा पर्याप्तिसे 'वचनबल' रूप प्राण और मनः पर्याप्तिसे 'मनोबल' रूप प्राण पैदा होते हैं। 'आयुष्य' नामका प्राण उत्पन्न करने कोई शक्ति प्राप्त करनेकी जरुरत न होनेसे कारणरूपसे किसी नई पर्याप्तिकी अगत्य नहीं रहती फिर भी आहार पर्याप्ति आयुष्य प्राणको टिकाने में मुख्य कारण रूप होनेसे उसे सहकारी कारण रूपमें मानी जा सकती सही। तत्त्वार्थभाष्य वृत्तिके आधार पर छ: पर्याप्तिओंकी विशिष्ट समझ 1. एक घर बनाना हो तो प्रथम ईंटें, लकडे, माटी, चूना आदि सामग्री एक साथ एकत्र की जाती है / यह सारी सामग्री घरके दलिक अर्थात् साधन रूपमें है। इस सामग्रीमेंसे कोनसी कहाँ उपयोगमें लेना वह क्रमशः निश्चित किया जाता है / __ इस तरह यहाँ उत्पत्ति स्थानमें उत्पन्न होता जीव प्रथम समय पर उस उस योग्यतावाले विविध रीतसे उपयोगी पुद्गलोंको सामान्यरूपमें ग्रहण करे उसका नाम आहार पर्याप्ति। इस पर्याप्तिके समय अनेक कार्योंका प्रारंभ होता है। 2. अब जैसे घरके लिए एकत्र की गई उस सामग्रीमेंसे जो लकडा था उसमें से इसका पाट, इसका स्तंभ, इसकी बारी बनेगी ऐसा सोचा जाता है, वैसे प्रथम समय पर ग्रहण किए गए पुद्गलोंमेंसे अमुक पुद्गल शरीर वर्गणा योग्य होनेसे उन पुद्गलोंसे शरीर बनता होनेसे जीव शरीरको बनानेमें समर्थ बनता है। परिणाम स्वरूप उस समय घरकी लंबाई, चौडाई, ऊँचाई, मोटाई निश्चित होती है, इस तरह यहाँ शरीरका स्वरूप निश्चित होता है। 3. उसके बाद घरमें कितने दरवाजे रखना ? कहाँ रखना ! निर्गमनके दरवाजे कहाँ रखना इसका निर्णय किया जाता है। साथ ही इन्द्रिय पर्याप्ति द्वारा प्रवेश करना, निकलना आदि मार्ग निश्चित होते हैं।