________________ * 210. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * मनुष्य ही रच सकता है। अर्थात् उत्तमोत्तम कोटिका संयमी साधु ही रच सकता है / किसी संसारी गृहस्थोंको यह शरीर उपलब्ध होता ही नहीं। केवल तेजस और कार्मण शरीरको स्वतंत्र अंगोपांग या इन्द्रियाँ नहीं होती। लेकिन जो औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरके लिए तथा इन्द्रियोंके लिए पर्याप्तियाँ की हैं। वे ही पर्याप्तियाँ तैजस और कार्मण शरीरके लिए औदारिक आदिके साथ समझ लेनी है। इतनी भूमिका बताकर अब पर्याप्तिका स्वरूप शुरू करते हैं। . पर्याप्ति विषयक निवेदन __जीव एक भवमें मृत्यु पाकर देहका त्याग करके अन्य गतिमें जन्म लेता है। उस समय उसे उत्पन्न होनेके साथ ही (प्रथम समयसे ही) अपनी जीवनयात्रामें उपयोगी हों ऐसी कम से कम चार और ज्यादा से ज्यादा छः प्रकारकी शक्तियाँ प्राप्त कर लेनी चाहिए। अगर इन शक्तियों या साधनोंको प्राप्त न करे तो जीवनका अस्तित्व भी न रहे / इन शक्तियोंकी सहायता होने पर ही जीवन जीना शक्य बनता है। देहधारियोंके लिए जिंदगी : तक जीने के लिए शक्तिकी अनिवार्य जरूरत होती है। खूबी तो यह हैं कि ये शक्तियाँ जन्मके बाद एक अंतर्मुहूर्त (एक मुहूर्त अर्थात् 48 मिनटसे कम काल) में जीव प्राप्त कर लेती हैं। ये शक्तियाँ विविध प्रकारके पुद्गलोंके समूहमें से उत्पन्न होती होनेसे विविध पुद्गलों का यथायोग्य संचय करने लगती हैं। इन पुदगलोंको अथवा तो उनसे उत्पन्न होती ( आहारादि क्रिया कर सकें वैसी) शक्तिको पर्याप्ति कहा जाता है। ___ यह संचय जीव करता होने से जीव कर्ता है। पुद्गलोपचय द्वारा जो शक्ति पैदा हुई उस शक्तिसे ही जीव आहार ग्रहणमें और शरीरादि कार्यों के निवर्तनमें समर्थ बनता है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि यह शक्ति ही जीवनका करण है। 503. तैजस और कार्मण ये दो शरीर, संसारी जीवोंकी औदारिक वगैरह शरीरादि कारणसे जैसी आकृति होती है वैसी आकृतिका अनुसरण करते हैं / क्योंकि ये दो शरीर दूधमें शक्करकी तरह मिले रहते हैं / अतः उन्हें स्वतंत्र अंगोपांगका संभव नहीं है जब कि औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन शरीरोंकी आकृतिओं को जीवात्मा अनुसरण करता होनेसे उसे अंगोपांग घटमान है और वे अंगोपांग छठे 'नामकर्म' नामकी एक कर्मसत्ताके उदयसे होते हैं / तेजस, कार्मण दोनों शरीर हमसे प्रत्यक्ष देखे नहीं जाते / मात्र अनुमान से ग्राह्य हैं / 504. पुद्गल अर्थात् जिनमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हो वैसे परमाणु, अणु प्रदेश या स्कंध /