________________ * योनि संबंधी विविध समज .. *.171 सचित्त अर्थात् सजीव हैं और शेष जो रहते हैं वे अचित्त माने जाते हैं। इस तरह मानवी स्त्रीकी योनिका मिश्रपन समझना / जीव जब वहाँ उत्पन्न हो तब प्रथम समय यही मिश्र आहार करता है / ___कुछ आचार्य ऐसा कहते हैं कि-रुधिर सचित्त है और वीर्य अचित है / कुछ महर्षि रुधिरको भी अचित्त कहते हैं। और योनिगत आत्मप्रदेशोंको ही सचित्त कहते हैं, और इस तरह मिश्रयोनिपन घटाते हैं / ____ पहले देव, नारकोंकी अचित्तयोनि और गर्भज नर, तिर्यंचोंकी मिश्रयोनि कही। अब शेष जीवोंमें सर्व संमूच्छिम अर्थात् एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय, समूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यच, मनुष्य, उन्हें सचित्त, अचित्त और मिश्र यों तीनों प्रकारकी हैं / वह किस तरह हो ? जीवित गाय आदि जीवोंके शरीरमें पडते कृमि आदि जंतुओंकी सचित्त योनि / [ जीवके संबंधवाली होनेसे ] अचित्त सूखे काष्ठमें उत्पन्न होते धुने आदिकी अचित्त योनि / अर्धसूखे [ हरा-सूखा ऐसा ] लकडे तथा गाय आदिके शरीरके क्षत-घाव वगैरह स्थानमें उत्पन्न होते, धुने तथा कृमि आदि जंतुओंकी मिश्रयोनि समझना। यह हकीकत स्पष्ट समझमें आ सकती है। .. योनिके शीतादिक स्पर्श प्रकार और उसके अधिकारी-स्पर्शकी दृष्टिसे योनिस्थानों का विचार करें तो योनि तीन प्रकारकी है। 1 शीत, 2 उष्ण, 3 शीतोष्ण / अर्थात् जिसका स्पर्श ठंडा लगे, या गरम लगे, या तो ठंडा, गरम दोनों प्रकारका अनुभव करावे वैसा / . किस प्रकारकी योनि कहाँ है ? अथवा उसके अधिकारी जीव कौनसे हैं ? तो प्रथमकी तीन नरक पृथ्वियोंमें नारकोंके जो उपपात क्षेत्र हैं वो शीत योनिवाले हैं / शेष . क्षेत्र उष्णस्पर्शी हैं। जिससे शीत योनि ही उष्णक्षेत्रमें आवे तब नारकों को वहाँकी उष्णवेदनाका कटु अनुभव होता है। जैसे युरोप जैसे ठंडे प्रदेशमें उत्पन्न हुए मनुष्यको उप्ण कटिबंध जैसे देशकी गरमी असह्य लगे वैसे। चौथी पंकप्रभाके ऊपरके भागमें बहुत उप्ण वेदनावाले नरकावासियोंकी शीत योनि और थोडे शीत वेदनावाले जीवोंकी उप्णयोनि, इस पृथ्वीमें उपपात क्षेत्रोंके सिवायके स्थल दोनों प्रकारके ( शीत-उष्ण ) स्पर्शवाले होनेसे दोनों प्रकारकी वेदनाका अनुभव होता है / पाँचवर्षी पृथ्वीमें बहुत शीत वेदनावाले आवासोंकी उष्णयोनि, थोडे उष्णवेदनावाले आवासोंकी शीत अर्थात् छठी तथा