________________ * 166 * * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . // परमाणुसे आरंभ करके अंगुल-योजन तकके प्रमाणका यन्त्र // अनन्त सूक्ष्म परमाणुका. अनन्त व्य० परमाणुकी 8 उत्प्रलक्ष्णप्रल०की ( হত্যঙ্গ স্কা 8 ऊर्ध्वरेणुका 8 त्रसरेणुका 8 रथरेणुका 8 कुरुवालाग्रका 8 ह० रम्यकावलान 8 है. है० बालाग्रका 8 पूर्वापर विदेहवा०का 8 भरतैरवतवा० की 8 लीखकी 1 व्यवहार परमाणु 8 युकासे 1 यवमध्य 1 उल्लक्षणश्लक्षिणका 8 यवमध्यका 1 उत्सेधांगुल 1 प्रलक्ष्णप्रलक्षिणका | 2097152 परमाणुसे , " 1 ऊर्ध्वरेणु 400 उत्से० 1 प्रमाणांगुल 1 त्रसरेणु 2 उत्से 1 वीरांगुल 1 रथरेणु 1 कुरुयुगलिकवालाग्र | 6 उत्सेधांगुलसे 1 पाद. 1 हरि० रम्यक्वालाग्र 2 पादका 1 बित्ता 1 हैम० हैर० बालाग्र || 2 बित्तका 1 हाथ 1 पूर्वापरविदेहवा० 2 हाथकी 1 कुक्षी 1 भरतरवतबालाग्र 2 कुक्षी या वामसे / 1 दंड, 1 अथवा 4 हाथसे धनुष 1 लीख या वामसे वा 96 / एक युग 1 युका अंगुलसे या मुसल नालिकादि 2000 धनुषसे 1 कोस 4 कोसका 1 योजन पुढवाइसु पत्ते, सगवगपत्ते अणत दस चउदस / विगले दु दु सुरनारयतिरि. चउ चउ चउदस नरेसु // 319 / / जोणीण होति लक्खा, सव्वे चुलसी इहेव घिप्पंति / समवण्णाइसमेआ, एगत्तेणेव सामन्ना // 320 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् सुगम है / / / 319-320 // विशेषार्थ—यहाँ प्रथम जीवोंकी योनिसंख्या कहकर फिर दूसरी गाथाके अर्थसे योनि की व्याख्या करते हैं / ..पृथ्व्यादिमें-अर्थात् पृथ्वी, अप, तेउ और वायुकाय इन प्रत्येककी सात सात लाख प्रमाण योनिसंख्या ज्ञानीपुरुषोंने ज्ञानचक्षुसे देखकर कही है। प्रत्येक वनस्पतिकायकी दस लाख योनि,, अनन्त [साधारण] वनस्पतिकायकी. चौदह लाख, विकलेन्द्रिय अर्थात्