SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . भरतचक्री को भी श्रेष्ठ पुरुषमें गिनकर उसकी 108 आत्मांगुल ऊँचाई मानकर वीर प्रभुसे 500 गुने कहे / " परंतु वहाँ भरतचक्रीको 'श्रेष्ठ पुरुष गिनकर 108 आत्मांगुली' गिनती स्वीकार की वही प्रथम भूल है क्योंकि 'अनुयोगसूत्रकार चक्री वासुदेव तथा तीर्थकर स्वात्मांगुलसे 120 अंगुल और शेष अधिक प्रधान पुरुष 108 अंगुल ऊँचे होते हैं। ऐसा कहा है, अब जब भरतचक्री स्वात्मांगुलसे 120 ऊँचे अंगुल बने, तब 120 स्वात्मांगुलका [96 अंगुल का एक धनुष इस हिसावसे] भरतका स्वात्मांगुली एक धनुष आया। इससे हमारे उत्सेधांगलसे भरतचक्री 500 धनुष ऊँचे हुए। अब एक आत्मांगुलके धनुष निकालने त्रैराशिकका उपयोग करें, इससे भरत आत्मांगुलीय सवा धनुषसे उत्सेधांगुलके 500 धनुष हों तो (भरतके ही) एक आत्मांगुलमें कितने धनुष हों ? त्रिराशि स्थापना 11-500-1 इस तरह होता है / प्रथमकी राशि अंशसहित [अपूर्ण] है, अतः गुण्य गुणककी रकमको समान करनी पडेगी, इसलिए हरेकके हाथ बना दें। जिससे सवा धनुष के [1 / 44] भरतांगुलीय 5 हाथ और मध्यमराशिके 500x4=2000 हाथअन्त्यराशिके 1444 हाथ / अब तीनों स्कमकी पुनः त्रिराशि स्थापित करें=५-२००० -4 इसमें अन्त्य की 4 राशिसे मध्यकी 2000 राशि को गुननेसे 8000 होते हैं, उसे प्रथमकी 5 राशिसे वटा करनेसे 1600 हाथ, एक स्वात्मांगुल [जैसे बृहत्] धनुषके आए, उस हाथकी संख्याके उत्सेधांगुलीय धनुष करने [चार हाथका एक धनुष होनेसे] चारसे बटा करनेसे 400 धनुष आए / जवाब यह निकला कि आत्मांगुलके एक धनुष में उत्सेधांगुलके 800 धनुष समा जाए, इस नियमानुसार आत्मांगुलके एक हाथसे उत्सेधांगुलके 400 हाथ, एक आत्मांगुलमें उत्सेधांगुल 400 और एक आत्मांगुलीय योजनमें [हमारे] 400 उत्सेधांगुलीय योजन समा जाए। इस तरह एक श्रेणी प्रमाणांगुल मापमें 400 उत्सेधांगुल होते हैं, ऐसा साबित हुआ। यहाँ पाठकोंको शायद शंकाका आविर्भाव होगा कि-पहले तो एक प्रमाणांगुलमें 1000 उल्सेधांगुल कहे थे उसका क्या ! उसका समाधान यह है कि-एक हजार उत्सेधांगुलकी जो गिनती होती है वह तो 400 उत्सेधांगुलकी चौडाईवाली दीर्घश्रेणीकी अपेक्षासे अर्थात् एक प्रमाणांगुलके 400 उत्सेधांगुलको विष्कम्भ सहित गिननेसे 400 अंगुल दीर्घ और 2 // अंगुल मोटी ऐसी एक अंगुलप्रमाण विस्तारवाली श्रेणीकी लंबाई [.40042 // ] 1000 अंगुलकी आवे इस दीर्घश्रेणीकी अपेक्षासे कहा है; बाकी तो वास्तविक '100 उत्सेधां
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy