________________ .158. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * कहा है, लेकिन इससे विसंवाद न समझना / वहाँ यह अपेक्षा है कि 400 गुनी लंबी और 2 // गुनी चौडी उत्सेधांगुलकी श्रेणिको 2 // के बदले एक ही अंगुल चौडी रखकर शेष 1 // अंगुल रहती चौडाईको ४००के साथ जोड दी जाए तो 400+400+ 200=1000 उत्सेधांगुल लंबी और एक उत्सेधांगुल चौडी ऐसी सीधी श्रेणि हो / अथवा लंबाई और व्यास को गुना करे 400x2 // तो मी हजार अंगुल हो / इस प्रमाणागुलका क्षेत्रफल हुआ / इस प्रमाणांगुलसे जो वस्तुएँ नापनी हैं, उनमें तीन प्रकारका प्रमाणांगुल उपयोगमें लिया जाता है / कुछ कहते हैं कि प्रमाणांगुलकी मात्र दीर्घतासे ही पृथ्वी, पर्वत नापना लेकिन विष्कम्भ-चौडाई एकत्र न लें अर्थात् सूची अंगुलसे ही नापें / दूसरे ऐसा कहते हैं कि नहीं, ऐसा नहीं। लेकिन प्रमाणांगुल के क्षेत्रफलसे ( अर्थात् हजार उत्सेधांगुलरूप ) मापना / जबकि तीसरा पक्ष कहता है कि दीर्घता न लें क्षेत्रफल न लें / मात्र विष्कम्भ अर्थात् 2 // उत्सेधांगुल विस्तारसे ही मापना / ___ यहाँ प्रथम पक्षमें प्रमाणांगुलीया एक योजनमें उत्सेधांगुल प्रमाणवाले 400 योजन, दूसरे पक्षमें एक हजार योजन और तीसरे पक्षमें 182 // योजन ( अर्थात् दस कोस ) आते हैं। प्रमाणांगुलसे क्या वस्तुएँ नापी जाती हैं ?—मेरु आदि शाश्वत पदार्थ धर्मादि नरक पृथ्वियाँ, सौधर्मावतंसकादि सर्व विमानो और गाथामें कहे 'आई' शब्दसे 'अन्य शाश्वत भवन-नरकावास-द्वीप-समुद्रो आदि शाश्वत पदार्थ ले लें / प्रमाणांगुलसे अचल और शाश्वत गिने जाते पदार्थ नापनेके हैं इसे ध्यानमें रखना / [314] अवतरण-गत गाथामें किस अंगुलसे क्या वस्तु नापी जाए इतना ही कहा था परंतु ये तीनों अंगुल किसे कहा जाए इस बाबतमें ग्रन्थकारने कहा नहीं था / ( अलबत्त विशेषार्थमें इस बातका इशारा किया है। ) अब गाथाद्वारा ही उत्सेधादि अंगुलकी गिनती परमाणुसे आरंभ की जाती है अतः ‘परमाणु' किसे कहा जाए ? उसकी व्याख्या करते हैं। ४पसत्येण सुतिक्षेण वि, छित्तं भित्तुं व जं किर न सका / तं परमाणु सिद्धा, वयंति आइ पमाणाणं // 315 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / / 315 // 458. अनुयोगद्वार तथा अंगुलसित्तरीमें तीसरे पक्षको ही योग्य गिना है और यह माप जघन्य होनेसे पृथ्व्यादिके मापमें ठीक अनुकूल रहता है / तत्त्वं तु केवलीगम्यं / 459. क्वचित् अन्वय अनुसार शब्दार्थक्रम रखा है।