________________ 1 समय विरह नहीं है-विरह नहीं है 12 मु. अन्तर्मु० of 4 1 अन्तर्मु० 12 मुहूर्त जघन्य उप० च्य० वि० - उत्कृष्ट | जघ०-उ० उ० च्य० सं० आठ द्वारका यंत्र // असंख्य तक असंख्यानंत असंख्य यावत् 1 से लेकर संख्यवर्षायुषीपर्याप्ता अपर्याप्ता एके० से लेकर पंचेन्द्रिय तकके सं० गर्भज तिर्यंच तथा मनुष्य एकेन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय तकके तिर्यचोंमें जाते हैं। और भवनपतिसे लेकर दो कल्प तकके देव उस पर्याप्ता संख्यवर्षायुषी गर्भज तिर्यचमें और पर्याप्ता अपर्याप्ता संख्यात वर्षायुषी एकेन्द्रिय से लेकर बादर पृथ्वी, अप और प्रत्येक वनस्पति में जाते हैं उससे उपर के सहस्रार तकके देव तथा नारक पर्याप्ता संख्यवर्षायुषी गर्भ में ही तिर्यच रूपमें उत्पन्न होते हैं / संख्यवर्षायुषी पंचेन्द्रिय तियेच जीव मरकर चारों गतिमें जाते हैं / साथ ही एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय मरकर निश्चित संख्यवर्षायुषी सर्व तिर्यच-मनुष्यमें जाते हैं / सिर्फ तेउ-वाउ एक मनुध्यमें न जाकर तिर्यचमें जाते हैं, यह विशेष है। Mmmmmmm आद्य 4 आद्य तीन अन्तर्मु० आगति | लेश्या स्थिति