________________ * विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवोंकी कायस्थिति * सूक्ष्म-चादर पृथ्वीकायादिपनसे विविध व्यवहार ] में आए नहीं हैं वे असांव्यवहारिक / ये असांव्यवहारिक जीव दो प्रकारके हैं। एक तो अनादि अनंत स्थितिवाले और दूसरा अनादिसान्त स्थितिवाले / अनादि अनंत स्थितिवाले असांव्यवहारिक जीव कदापि व्यवहार राशिमें नहीं आए और आनेवाले भी नहीं हैं। [ और उनकी स्थिति अनंत पुद्गल परावर्त जितनी है ] और अनादिसान्त कायस्थितिवाले असांव्यवहारिक जीव अब तक व्यवहारराशिमें आए नहीं लेकिन आनेवाले हैं। [ उनकी स्थिति अनंत पुद्गल परावर्तनकी, लेकिन पूर्वापेक्षया न्यून है। ] इन दोनों प्रकारके जीव अनन्ता हैं। सांव्यवहारिक अर्थात् क्या ? जो जीव अनादि निगोदमें से तथाविध सामग्रीके योगसे पृथ्व्यादिक [ सूक्ष्म या बादर ] के व्यर्वहारमें एक बार भी आए हों वे सांव्यवहारिक / ये जीव भी अनन्ता हैं और वे सादिसान्त स्थितिवाले हैं। ___ असांव्यवहारिक निगोद सूक्ष्म ही होता है क्योंकि वहाँ व्यवहारपन नहीं होता। जबकि सांव्यवहारिक निगोद सूक्ष्म तथा बादर दोनों होते हैं। सूक्ष्मनिगोदकी कायस्थिति तीन प्रकारसे है। 1. अनादिअनंत, 2. अनादिसान्त, 3. सादिसान्त / इनमें प्रथमकी दो स्थिति असांव्यवहारिक सूक्ष्मको घटती है। और अंतिम सांव्यवहारिक सूक्ष्म-वादर दोनोंको घटती है। 1. इनमें अनादिअनंत कायस्थिति है वह, असांव्यवहारिक जीव कि जो अनादि सूक्ष्म निगोदसे निकले नहीं हैं और निकलनेवाले भी नहीं है उनकी हैं। और वह कालसे अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण है। और वह असंख्य नहीं परंतु अनन्त पुद्गलपरावर्त प्रमाण है। 2. अनादिसान्त यह भूतकालमें जो कभी भी सूक्ष्म निगोदसे बाहर आए नहीं परंतु भविष्यमें आनेवाले हैं वैसे असांव्यवहारिक निगोदकी अनादिसान्त कायस्थिति है। .. यह स्थिति भी अनन्त पुद्गलपरावर्त जितनी है, क्योंकि बीता काल तो अनन्ता हैं और भविष्यमें अगरचे व्यवहारमें आनेवाले हैं तो भी कतिपय का तो भाविकाल अब भी 437. अस्थि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसाइ परिणामो। ते वि अणंताणता निगोअवासं अणुवसंति // [विशेषणवती] 438. यह पृथ्वीकाय, यह अपकाय, इत्यादि व्यवहार जिसका हो सके वह /