________________ * तिर्यचोकी स्थितिविशेषका वर्णन * . सहा य सुद्ध-वालुअ, मणोसिल सकराय खरपुढवी / इग-बार चउद-सोलस-ऽठारस-बावीससमसहसा // 285 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / 285 / / विशेषार्थ-गत गाथामें ऊपर बताये गए भेदमें पृथ्वीके कोमल तथा कर्कश दो मेद बनाये थे उनमें सात रंगवाली मरु आदि स्थलकी मृदु-कोमल पृथ्वीकी उत्कृष्ट भवस्थिति एक हजार वर्षकी है / पृथ्वीके 40 भेद हैं। उनमें गोशीर्षचंदनादिक जैसी शुद्ध-कुमार सुकोमल मिट्टीकी बारह हजार वर्षकी, वालुका-उस नदी प्रमुख रेतकी चौदह हजार वर्षकी, मनःशिला और पाराके सोलह हजार वर्षकी, शर्करा अर्थात् थोडे टुकडे-कंकड ( सुरमादिक )की अठारह हजार वर्षकी, तथा खर अर्थात् शिला पाषाणरूप कठिन पृथ्वीकी 22 हजार वर्षकी होती है / शेष भेद अन्तर्गत सोच लेना / [ 285 ] __ अवतरण-अगाऊ तीन पल्योपमकी स्थिति सामान्यतः कही है, अब पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके मेदमें जो स्थितिविशेष है उसे कहते हैं। गब्भभुअजलयरोभय, गब्भोरग पुवकोडि उक्कोसा / . गम्भचउप्पयपक्खिसु, तिपलिअपलिआअसंखेसो // 286 // गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार / / 286 / / विशेषार्थ-गर्भज भुजपरिसर्प ( भुजासे चलनेवाले ) नेवले, चूहे, गिलहरी, छिपकली आदिकी तथा गर्भज और संमूच्छिम जलचर मत्स्य, मगर-व्हेल, कछुओ तथा दूसरे अन्य जीवोंकी, गर्भज उरपरिसर्प (पेटसे चलनेवाले) अजगर, गोह, सादिककी करोडपूर्वकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति है / तथा गर्भज चतुष्पद गाय, सिंह आदिकी उत्कृष्ट 3 पल्योपमकी, गर्भज-खेचर मोर, हंस, उल्लू, कौए, चिडियाँ आदि पक्षियोंकी पल्योपमके असंख्यातवें भागकी होती है ! यहाँ उत्कृष्ट स्थिति जिनकी कही है, वे सारे जीव उस स्थितिवाले हों ऐसा न समझना, लेकिन उससे न्यून स्थितिवाले भी बहुत होते हैं / साथ ही यह उत्कृष्ट स्थिति और आगे कहे जाते तिर्यचोंकी स्थिति प्रायः निरुपद्रव स्थानोंमें वर्तित हों उनकी समझना / ऐसा निरुपद्रव स्थान तो अढाईद्वीपके बाहरका गिना जाता है / [ 286 ] अवतरण—गत गाथामें पूर्वकोटी आयुष्य कहा तो पूर्व किसे कहा जाए ? . .पुवस्स उ परिमाणं, सयरि खलु वासकोडिलक्खाओ / छप्पन च सहस्सा, बोद्धव्वा वासकोडीणं // 287 // गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 287 //