________________ * नवनिधानका स्वरुप . .7. महाकालनिधिः-लोहा तथा सोना-चांदी आदि धातुएँ और उनकी खाने तथा मणि-मोती-प्रवाल-हीरे-माणिक-चन्द्रकान्तमणि आदि रत्न ये सर्व वस्तुएँ इस निधि द्वारा प्राप्त होती हैं अथवा उनकी उत्पत्ति इस निधि में कही है / 8. माणवकनिधिः-योद्धे, उनके पहनने के बख्तर, हाथ में धारण करनेके शस्त्र, युद्ध की कला, व्यूहरचना, सात प्रकार की दंडनीति आदि सर्व विधि इस निधान द्वारा जान सकते हैं / 9. महाशंखनिधिः-नाटक, विविध काव्य, छंद, गद्य-पद्यात्मक चंपू, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और संकीर्ण इस तरह चारों प्रकार के काव्य-भाषाएँ इस नवम निधिसे जान सकते हैं / इस तरह चक्री के अपने परम पुण्योदय से मनुष्य जाति तथा मानवस्वभाव को उपयोगी तमाम साधन-सामग्री इन निधियों द्वारा प्राप्त होती है / [ 268 ] (क्षेपक गाथा 65) // नौ निधियों के नाम तथा तद्विषय प्रदर्शक यन्त्र // निधि नाम निधिगत क्या क्या है ? | निधि नाम | निधिगत क्या क्या है ? 1. नैसर्पनिधि | गाँव-नगर-गृहादि स्थापन | 6. कालनिधि | 63 शलाकाचरित्रो-ज्योतिष विधि शिल्पादि शास्त्र की विधि 2. पांडुकनिधि | धन-धान्य-मान की तथा 7. महाकालनिधि मणि-रत्न-प्रवालादि उत्पत्ति की विधि - धातु खानोंकी विधि 3. पिंगलनिधि | स्त्री-पुरुष गजाश्वादि . माणवकनिधि, सर्व शस्त्रोत्पत्ति-बख्तर आभरण विधि नीति की विधि 4. सर्वरत्ननिधि | चक्रादि चौदह रत्नोत्पत्तिकी 9. शंखनिधि गायन-नाट्य काव्य वादित्रादिक की सर्व विधि विधि 5. महापद्मनिधि वस्त्रोत्पत्ति-रंगने की विधि बताई गई है। अन्य मतसे तो, इन वस्तुओं को ही साक्षात् निधिगत समझना / प्रत्येक निधिमान 12 योजन दीर्घ, 9 यो० विस्तार, ८यो * ऊँचाई का जाने / अवतरण-अब सारे जंबूद्वीप में समकाल में उत्कृष्ट तथा जघन्यसे कितनी रत्न संख्या होती है? यह कहते हैं /