________________ * संमूच्छिम और गर्भज मनुष्य का स्वरुप * - 'कर्मभूमि में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के पुनः आर्य-अनार्य इस तरह दो भेद हैं / आर्यों-त्याग करने लायक का त्याग करके उपादेय गुणों को पाए हुए हों वे आर्यों कहलाते / दूसरी तरह दुर्लभ मानव जीवन को प्राप्त करके कर्तव्य का आचरण और अकर्तव्य का अनाचरण करके प्राप्त मानवता को सफल करने को प्रयत्नशील हो / विभावदशा को छोड़कर स्वभावदशा सम्मुख हो वह भी आर्य कहलाता है / ये आर्यों जहाँ रहते हों वे देशो भी आर्य कहलाते हैं / इस भूमि में धर्म के तमाम सद्संस्कारों की प्राप्ति के सुंदर साधन तथा योग वर्तित हैं, जिसके द्वारा मुक्ति की साधना साध्य की जा सकती है। . - ये आर्यो मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं : 1. ऋद्धिप्राप्त 2. अऋद्धिप्राप्त / ऋद्धिप्राप्त में तीर्थकरो, चक्री, वासुदेव, बलदेव, पवित्र विद्यावंतों और लब्धिवंतों का समावेश होता है। और अऋद्धिप्राप्त क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, शिल्प, भाषा इस तरह ये आर्य छः विभागों में हैं / अनार्यो-ईस से विपरीत लक्षणवाले वे अनार्यों अर्थात् पापी प्रकृतिवाले, घोर कर्म करनेवाले, पाप की धृणा से वंचित और पाप का पश्चाताप नहीं करनेवाले होते हैं / शक, यवन, पर्वर, शवर, गौड, द्रविड, औंध, पारस, मलय, मालव, अरव, हूण, रोमक, मरह आदि अनेक जातिओं की गणना अनार्य में की है। यह कथन एकान्तिक नहीं समजना / . इस तरह गर्भज मनुष्यों की प्रसंगवश पहचान दी। . इन मनुष्यों के आयुष्य और देहमान देश-काल के अनुसार भिन्नभिन्न होते हैं, लेकिन यहाँ इस गाथा में तीन पल्योपम जितना विशाल आयुष्य और तीन कोस के देहमान की जो विशालता बताई है वह, उस उस देश-क्षेत्रवर्ती युगलिकोंकी है, परंतु ये युगलिको अवसर्पिणी के पहले और उत्सर्पिणी के अंतिम आरा के समय विद्यमान हों वे ही समझना / (तथा देवकुरु-उत्तरकुरु के युगलिकों का आयुष्य कायम तीन पश्योपम होता है / ) अन्यथा सामान्य (युगलिक भाव रहित ) मनुष्य का तो किसी काल में अधिकाधिक पूर्वक्रोड का आयुष्य और पाँचसौ धनुष्य का देहमान होता है / 386. आरात् सर्वधर्महेयधर्मेभ्यो यातः प्राप्तगुणैरित्यार्थः / [:प्रज्ञा 1, पद टीका] 'कर्तव्यमाचरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन् / तिष्ठति प्रकृताचारे, स वा आर्य इति स्मृतः // ' 385. इन सब प्रकारों का वर्णन ग्रन्थान्तर से जानें // 388. पावा- य चंडकम्मा अणारिया णिग्धिणा गिरनुतावी /