________________ अवसर्पिणी कालका वर्णन गाथा 5-6 [ 47 है, जिसके अंतिम समय पर भी श्री दुप्पसहसूरि, फल्गुश्री साध्वी, नागिलनामा श्रावक और सत्यश्री नामकी श्राविकारूप चतुर्विध संघ जो विद्यमान रहेगा, उस शासन और चतुर्विधसंघका भी इस पंचम आरेके अंतिम दिवसका प्रथम प्रहर पूर्ण होने पर विच्छेद होगा। अर्थात् पूर्वाह्नकालमें श्रुतधर्म आचार्य, संघ और जैनधर्मका विच्छेद होगा; मध्याह्न समय पर विमलवाहन राजा, सुधर्म मंत्री और उसके राजधर्मका विच्छेद होगा और संध्याकालमें बादर अग्निका विच्छेद होगा। अभी पांचवें आरेका प्रारंभ है, जिसे लगभग 2500 वर्ष हुए हैं अभी लगभग 18500 वर्ष बाकी हैं, उनके पूर्ण होनेके कालमें उपर्युक्त घटनाएँ घटेंगीं / अभी तो क्रमशः प्रत्येक क्षेत्रमें हास होता रहेगा। 6. दुःषमदुःषम-जिसमें केवल दुःख ही दुःख हो, अर्थात् सुखका बिलकुल अभाव हो / यह आरा भी 21000 वर्ष प्रमाणका है। इस आरेके मनुष्योंका उत्कृष्ट शरीर प्रमाण दो हाथका, आयुष्य पुरुषका 20 वर्षका और स्त्रीका 16 वर्षका होता है। पंचम आरेके अंतमें कहे गये सर्व दारुण उपद्रव विशेष प्रमाणमें छठे आरेमें वर्तित हैं। इस आरेमें स्त्रियाँ अत्यन्त विषयासक्त और शीघ्र यौवनको पानेवाली होती हैं / छठे वर्ष में गर्भको धारण करनेवाली और छोटी उम्रमें ही अनेक बालक-बालिकाओंको दुःखपूर्वक जन्म देनेवाली होती हैं। ___ इस तरह ये बेचारे, निष्पुण्य जीव इस आरेका समय दुःखसे महान् कष्टसे पूर्ण करते हैं। .. -इति अवसर्पिणीषडारकस्वरूपम् // // उत्सर्पिणीका स्वरूप // .. पहले अवसर्पिणीके छह 'आरों का स्वरूप संक्षिप्तमें बताया, उससे विपरीत पश्चानुपूर्वीसे उत्सर्पिणीके छह 'आरोंका स्वरूप बताया जाता है। 1. दुःषम-दुषमआरा-जिसमें दुःख बहुत हो वह। यह आरा 21000 वर्ष प्रमाणका है। अवसर्पिणीके छठे आरेके प्रारंभसे पर्यंत तक सभी पदार्थों के भाव क्रमसे 76. 'तह सग्ग्चुओ सूरी दुप्पसहो, साहुणी अ फगुसिरि / - नाइलसड्ढो-सड्ढी सच्चसिरि अंतिमो संघो // ' . 'सुअ-सूरि-संघ-धम्मो-पुब्वहे छिज्जिही अगणि सायं / निवविमलवाहणो सुह-म्मति नयधम्ममज्झले // ' [कालसप्ततिका ]