________________ * अध्यवसाय की विचित्रता से होती हुई गति * / 61. वाला दाढी पक्खी, जलयर नरयाऽऽगया उ अइकूरा / जति पुणो नरएK, बाहुल्लेणं न उण नियमो // 254 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 254 // विशेषार्थ-क्रोध से भरे, अनेक की हानि करनेवाले व्याल अर्थात् सर्प-अजगर आदि जीव, दाढवाले ये व्याघ्र-सिंहादिक हिंसक जीव, गीध-चील आदि मांसाहारी पक्षी, मत्स्यादि जलचर जीव; -नरकगति में से आए होने पर भी, पुनः हिंसक प्रवृत्ति से अति क्रूर अध्यवसाय उत्पन्न होने के कारण नरकायुष्यका बन्ध करके नरक में यथायोग्यता से उत्पन्न होते हैं; परंतु इसका कोई निश्चित नियम नहीं है। मगर प्रायः पुनः नरक में जाते हैं। साथ ही कोई जीव तथाविधजातिस्मरणादिक के निमित्त को पाकर सम्यक्त्व का लाभ प्राप्त करके सद्गति को भी पाता है। [ 254 ] उपपातविरह // सातों नरक में च्यवनविरह-उपपातसंख्या-च्यवनसंख्या और उनके . गतिद्वार विषयक यन्त्र - ज० उ० नरकनाम उत्कृष्ट ज०उ०उप० / गतिद्वार-जाति-संघयणाश्रयि विरह उ०च्य०वि० च्य० सं० गति का नियमन 1 रत्नप्रभा में 1 समय 24 मुहूर्त | जघन्यसे | अ०समु०५०प० तिर्यंचो पहले ही... एक दो -नरक में छेवट्टा सं. वाला आवे 2 शर्कराप्रभा में 7 दिवस यावत् भुजपरिसर्प दो नरक तक.... उत्कृष्टसे ___-छेवट्टा सं.. वाला आवे 3 वालुकाप्रभा में संख्य पक्षी-खेचर....तीन नरक तक.... असंख्य ___ कीलिका संघयणवाला 4 पंकप्रभा में 1 मास उपपात सिंहादि चौपाये....चार नरक तक च्यवनसंख्या -अर्द्धनाराचवाला 5 धूमप्रभा में 2 मास हो सकती है। उरपरिसर्प....पांच नरक तक - नाराचवाला 6 तमःप्रभा में 4 मास सातों नरकमें स्त्री आदि....छः नरक तक ऋषभनाराचवाला 7 तमस्तमप्रभा में 6 मास [ देववत् ]] मनुष्य-मच्छो ....सात नरक तक वज्रऋषभना० वाला सातों नरकाश्रयी ओघ से' उत्कृष्ट उपपात-च्यवनविरह 12 मुहूर्त और ज०से 1 समय जानें 5 दिवस