________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * 17 धनुष 2 हाथ 7|| अंगुल का उत्कृष्ट देहमान मिलता है / तीसरे प्रतर पर उस वृद्धि अंक को मिलाने से 19 धनुष 2 हाथ 3 अंगुल का, चौथे पर , 21 धनुष 1 हाथ 22 / / अंगुल का, पाँचवें पर 23 धनुष 1 हाथ 18 अंगुल का, छठे पर 25 धनुष 1 हाथ 13 // अंगुल का, सातवे पर 27 धनुष 1 हाथ और 9 अंगुल का, आठवें पर 29 धनुष 1 हाथ 4 // अंगुल का तथा नौवें प्रतर पर उत्कृष्ट भव० मानं 31 धनुष और 1 हाथ का आ जाता है / [ 247 ] ४-अब वालुका के अंतिम प्रतर में जो देहमान मिलता है वही 31 धनुष 1 हाथ का मान चौथी पंकप्रभा के प्रथम प्रतर पर भी जान लें, उसी * मान में से एक कम कर के पंकप्रभा के 6 प्रतरों से भागने से प्रत्येक प्रतर के लिए '5 धनुष और 20 अंगुल का वृद्धि अंक' निकल आता है / अब इस 5 धनुष और 20 अंगुल को प्रथम प्रतर के देहमान में मिलाने से द्वितीय प्रतर पर 36 धनुष 1 हाथ 20 अंगुल का देहमान आ मिलता है / इस प्रकार तीसरे पर 41 धनुष- 2 हाथ 16 अंगुल, चौथे पर 46 धनुष 3 हाथ 12 अंगुल, पाँचवें पर 52 धनुष 8 अंगुल, छठे पर 57 धनुष 1 हाथ 4 अंगुल तथा सातवें प्रतर पर 62 धनुष और 2 हाथ का देहमान जाने / / 5- अब चौथी नरक के अंतिम प्रतर का यह मान पाँचवीं धूमप्रभा के प्रथम प्रतर पर 62 धनुष, 2 हाथ का मिलता है / यहाँ भी उसी प्रकार ही मान में से एक कम ऐसी इस पृथ्वी का चार प्रतर से भाग करने से प्रत्येक प्रतर में '15 धनुष और 2 // हाथ का वृद्धि अंक' आता है / अतः इसी अंकमान को प्रथम प्रतर के मान में मिलाने से दूसरे प्रतर पर 78 धनुष 0 // हाथ (एक वहेत) का, तीसरे प्रतर पर 93 धनुष 3 हाथ, चौथे पर 109 धनुष 1 // हाथ तथा पाँचवे प्रतर पर 125 धनुष का देहमान आता है / ६-यही 125 धनुष का देहमान नीचे की छट्ठी तमःप्रभा पृथ्वी के प्रथम प्रतर पर मिलता है। अब द्वितीयादि प्रतरों के लिए ठीक ऊपर की तरह ही उसी मान में से एक कम कर के उसे दो प्रतर संख्या से भागने से 62 // धनुष का वृद्धि अंक' आकर मिलता है / अब उसे 125. धनुष के अंक में मिलाने से तमःप्रभा के दूसरे प्रतर पर 187 / / धनुष का तथा तीसरे प्रतर पर 250 धनुष का देहमान आ मिलता है. /