________________ .50. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी भाषांतर . विशेषार्थ-रत्नप्रभा पृथ्वी के तेरह प्रतरमें से पहले प्रतर पर तीन हाथ का . उत्कृष्ट भवधारणीय देहमान होता है, इसके बाद द्वितीयादि प्रतर के लिए प्रथम प्रतर के तीन हाथ में 56 // अंगुल की ( अथवा दो हाथ-८॥ अंगुल) की क्रमशः वृद्धि करने से दूसरे प्रतर पर [3 हाथ + 2 + 8 // अंगुल, 5 हाथ - 8 // अंगुल ] 1 धनुष, 1 हाथ और 8 // अंगुल मिलता है / तीसरे प्रतर पर 1 धनुष, 3 हाथ और 17 अंगुल, चौथे प्रतर पर 2 धनुष, 2 हाथ और 1 // अंगुल, पाँचवें पर 3 धनुष, 10 अंगुल, छठे पर 3 धनुष, 2 हाथ और 18 // अंगुल, सातवें पर 4 धनुष, 1 हाथ और 3 अंगुल, आठवें पर 4 धनुष, 3 हाथ, 11 // अंगुल, नवे पर 5 धनुष, 1 हाथ, 20 अंगुल, दसवे पर 6 धनुष, 4 // अंगुल, ग्यारहवें प्रतर पर 6 धनुष, ..2 हाथ, 13 अंगुल, बारहवें पर 7 धनुष, 21 / / अंगुल तथा अंतिम तेरहवें प्रतर पर 7 धनुष, 3 हाथ और 6 अंगुल देहमान पूर्वोक्त कथनानुसार आता है / [245] ___अवतरण-अव उसी उत्कृष्ट देहमान को शेष शर्करादि सातों पृथ्वी में इस प्रकार बताते हैं / जं देहपमाण उवरि-माए पुढवीए अंतिमे पयरे / तं चिय हिटिम पुढवीए, पढमे पयरम्मि बोद्धव्वं // 246 // तं चेगूणगसगपयर-भइयं बीयाइपयखुड्ढि भवे / तिकर तिअंगुल कर सत्त, अंगुला सद्विगुणवीसं // 247 // पण धणु अंगुल वीसं, पणरस धणु दुनि हत्थ सड्ढा य / बासहि धणुह सड्ढा, पणपुढवीपयरखुड्ढि इमा // 248 // गाथार्थ- ऊपर आई हुई पृथ्वी के अंतिम प्रतर पर जो देह प्रमाण मिलता है वही देह प्रमाण नीचे आयी हुई पृथ्वी के प्रथम प्रतर पर अवश्य जानें / // 246 // इन शर्करादिक छः पृथ्वियों के प्रथम प्रतर के लिए यह उपाय बताया गया है / अव शर्करादिक छहों पृथ्वियों के अन्य प्रतरों के लिए ऐसा करें कि हरेक पृथ्वी में प्राप्त प्रथम प्रतरवर्ती देहमान को अपनी अपनी पृथ्वी में प्राप्त प्रतर की संख्या में से एक की संख्या कम करके भाग दें, भाग देने के बाद जो रकम या संख्या आती है वह उसी पृथ्वी के द्वितीयादि प्रतरों में वृद्धिकारक बनें / ऐसा करते करते अनुक्रम से (शर्करा में वृद्धि अंक) तीन हाथ और तीन अंगुल, तीसरी के लिए 7 हाथ और 19 // अंगुल, चौथी के लिए 5 धनुष, 20 अंगुल, पाँचवीं नरक के लिए 15 धनुष,