________________ 386 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-२०० ता अंगुलके * योजन // चारों निकायमें अवधिज्ञानका जघन्य-उत्कृष्टप्रमाण यन्त्र // देवनाम जाति | .ऊवं उत्कृष्ट | अधः उत्कृष्ट | तिर्यक् उत्कृष्ट | तीनों प्रकारका अवधिविषय | अवधिविषय | अवधिविषय | जघन्यअवधि 1 असुर कु-नि. का || सौधर्मान्त तीसरे नरकांत | असंख्य योजन | 25 यो. से शेष नौ नि. का संख्य योजन | अधिक-तर-तम दस हजार वर्षायुषी 3 25 योजन संख्य यो. 2 व्यन्तरोंका || संख्याता योजन | संख्याता योजन 25 योजन . दस हजारीका संख्य यो. 3 ज्योतिषीका संख्याता योजन 1 सौधर्मका स्वविमान- प्रथम नरकांत | असंख्य योजन | असं. भागका धजा तक तलवे तक अधिक असंख्य 2 ईशानका 3 सनत्कुमारका दूसरे नरकान्त | इससे अधिक असं. योजन 4 माहेन्द्रका 5 ब्रह्मलोकका तीसरे नरकान्त | तीसरे चौथेके 6 लांतकका बजाय अधिक असं. योजन 7 महाशुक्रका 8 सहस्त्रारका चौथे नरकान्त | पाँचवें छठवेंके बजाय 9 आनतका अधिक असं. यो. 10 प्राणतका पाँचवें नरकान्त सातवें आठवेंसे 11 आरणका अधिक असं.यो. 12 अच्युतका नौवें-दसवेंसे अधिक असं.यो. 1 पहली ]. त्रिक पर छठे नरकान्त | ग्यारहवें-बारहवें से 2 दूसरी 3. त्रिक पर अधिक असं यो. 3 तीसरी ]. त्रिक पर सातवें नरकांत / दोनों त्रिकसे भी तलवे पर अधिक असं. यो. [ कुछ न्यून अधोलोकनालिका | स्वयंभूरमण 5 अनुत्तर पर लोकनालिका]| प्रान्त तक समुद्र यावत् "