________________ पल्योपम, सागरोपमादिकालमानकी व्याख्या गाथा 3-4 [ 35 तो 25 ५°कोडाकोडी कुओं में पूर्वरीतिसे किये असंख्य-असंख्य खण्डोंवाले रोमखण्डोंकी जितनी संख्या हो उतने द्वीप-समुद्र हैं अर्थात् सागरोपमसे ५१ढाई सूक्ष्मउद्धार सागरोपमके जितने समय है उतने ही द्वीपसमुद्र हैं। इति सूक्ष्म-उद्धार-पल्योपमस्वरूपम् // बादर-अद्धापल्योपमम् // 3 // पहले 'बादर उद्धार पल्योपम 'के समय जिस मापके पल्पमें जिस तरह बालाग्र भरे थे, उसी तरह यहाँ भी कल्पना करें / उस समय, उस पल्यमेंसे प्रथम प्रतिसमय-उद्धार क्रिया की थी, तब यहाँ बादर अद्धापल्योपम निकालनेके लिए, हर सौ वर्ष में एक एक बालाग्र मात्र निकालना, अर्थात् सौ वर्ष हों तब एक बार एक बालाग्र कम करना। दूसरे सौ वर्ष हों तब एक दूसरा बालाग्र बाहर निकालना. इस तरह क्रिया करते जब वह पल्य बालापोंसे रहित हो जाए तब बादर-अद्धा-पल्योपम होता है। यह पल्योपम संख्याता एक करोड़ वर्ष प्रमाण है और इसका निरूपण आगे कहे जानेवाले 'सूक्ष्मअद्धापल्योपम'को समझनेके लिये ही है। ऐसे दस कोडाकोडी सूक्ष्म अद्धापल्योपमसे एक 3. 'सूक्ष्मअद्धासागरोपम' होता है। यहाँ ' अद्धा' अर्थात् समयके साथ तुलना किया हुआ काल / सूक्ष्म-अद्धापल्योपमम् / / 4 / / पहले सूक्ष्म उद्धार पल्योपमके प्रसंग पर प्रत्येक बादर रोमखण्डोंका जिस तरह असंख्यात असंख्यात खण्ड कल्पित किये थे वैसे ही यहाँ पर कल्पित करें, (पल्यप्रमाण पूर्ववत् समझना) कल्पना करके प्रतिसमय नहीं निकालकर हर सौ वर्ष पर एक एक बालाग्र ____50. कोडाकोडी अर्थात् किसी भी मूल संख्याको एक करोड़से गुना करनेसे जो संख्या प्राप्त हो, वह समझना / जिस तरह 100000000 दस करोडको 10000000 एक करोड़से गुना करे तो 1000000000000000 (दस कोडाकोडी) संख्या होती है, परन्तु वर्गगणितकी तरह उतनी संख्याको उतनी संख्यासे गुना करना ऐसा नहीं / 51. 'एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवमसागरोवमेहिं दीप समुद्दाणं उद्धारो धेप्पई // ' सिद्धान्तेऽप्युक्तं• " केवइया णं भंते / दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नता ? गोयमा / जावइआणं अड्ढाइजाणं उद्धार सागरोवमाणं उद्धार, समया, एवइयाणं दीवसमुद्दा उद्धारेणं पन्नत्त ! // ' अन्येऽप्याहुः. ." जावइओ उद्धारो, अड्ढाइज्जाण सागराण भवे / तावइया खलु लोए, हवंति दीवा-समुद्दा य // " [प्र. सारो. द्वा. 159]