________________ 306 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी . [ गाथा 129-137 इस प्रकार 61 नाम पूर्वदिशाकी पंक्तिके कह दे। शेष रही तीन पंक्ति, उनमें उपरोक्त कथनानुसार पश्चिम दिशाकी पंक्तिके प्रथम त्रिकोणविमानका नाम उडुशिष्ट, दूसरा विमान स्वस्तिकशिष्ट, तीसरेका श्रीवत्सशिष्ट, इस तरह 61 नामोंको ‘शिष्ट' शब्द लगाकर पंक्ति समाप्त करे। इस प्रतरके दक्षिण दिशाकी पंक्तिके प्रथम विमानका नाम उडुमध्य, दूसरेका स्वस्तिकमध्य, तीसरेका श्रीवत्समध्य, इस तरह 61 नाम 'मध्य' शब्दसे सम्बोध कर समाप्त करे / अब रही अन्तिम चौथी पंक्ति। उस पंक्तिके प्रथम विमानका नाम 'उडुआवर्त', दूसरेका नाम स्वस्तिकआवर्त, तीसरेका श्रीवत्सआवर्त, इस तरह 61 नाम 'आवर्त' शब्द लगाकर पूर्ण करे। इस तरह अन्यत्र भी समझ ले। पुष्पावकीर्ण विमान कैसे नामवाले होते है ? तो इष्ट वस्तुओंके जितने नाम होते . हैं, उन नामवाले, सौभाग्यवाली वस्तुओंके नामवाले जो परिणाम विशेषादि वस्तुओंके और अन्तमें तीनों जगतमें द्रव्योंके जितने भी नाम हैं उन सभी नामवाले पुष्पावकीर्ण विमान होते हैं / (129-135 ) (प्र. गा. सं. 37 से 43 ) अवतरण-पूर्व 129 से 135 गाथामें इन्द्रक पंक्तिगत तथा पुष्पावकीर्ण विमानोंके नाम बताये थे / अब लोकमें 45 लाख योजन और लाख योजन प्रमाणवाली कौन कौनसी चीजें शाश्वत होती हैं ? वे बताते हैं पणयालीसं लक्खा, सीमंतय माणुसं उडु सिवं च / .. अपइट्ठाणो सम्वट्ठ, जम्बूदीवो इमं लक्खं // 136 / / (प्र. गा. सं. 44) गाथार्थ-इस चौदह राजलोकमें पहले नरकके प्रथम प्रतरमें आये हुए सीमन्त नामक इन्द्रक नरकावास, मनुष्यक्षेत्र, उडु नामक विमान और सिद्धशिला इन चारों वस्तुएँ पैंतालीस लाख योजन प्रमाणयुक्त है और सातवें नरकके अन्तिम प्रतरमें अप्रतिष्ठित नरकावास तथा अनुत्तर कल्पमें स्थित सर्वार्थसिद्ध नामक विमान और जम्बूद्वीप इन तीनों वृत-वस्तुएँ एक लाख योजन प्रमाणयुक्त है। // 136 // विशेषार्थ-सुगम है। [136] (प्र. गा. सं. 44) इत्यावलिकागतानां-पुष्पावकीर्णानां च विमानानां स्वरूपम् / / अवतरण--अब चौदह राजकी गिनती किस तरह है ? और हरेकका मर्यादास्थान कहाँ है ? वह कहते है तथा ग्रन्यांतरसे कुछ अधिक स्वरूप भी कहेंगे / अह भागा सगपुढवीसु, रज्जु इक्विक तह य सोहम्मे / माहिंद लंत सहसारऽच्चुय, गेविज्ज लोगते // 137 //