________________ 274 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी / [गाथा-९५ ___ अवतरण-पहले समग्र निकायाश्रयी विमानसंख्या बताई / अब प्रत्येक कल्पमें वे विमान किस तरह रहे हैं और प्रतिकल्प विमानसंख्या कितनी हो ? यह जाननेको युक्ति बताते हैं। चउदिसि चउपतीओ, बासद्विविमाणिया पढमपयरे / उवरि इक्किक्कहीणा, अणुत्तरे जाव इक्किक्कं / / 95 // गाथार्थ- प्रत्येक कल्पमें चारों दिशाओं में चार पंक्तियाँ होती हैं / उनमें प्रथम प्रतरमें बासठ-बासठ विमानोंकी चार पंक्तियाँ हैं / पश्चात् ऊपर जाने पर प्रथम प्रतरसे एक-एक विमान (चारों पंक्तिमेंसे) हीन हीन करते जाना यह अनुत्तरसे यावत् एक-एक रहे तब तक। // 95 // विशेषार्थ-पहले गाथा चौदहमें वैमानिक निकायमें कुल बासठ प्रतर हैं ऐसा बताया है / उस प्रत्येक प्रतरमें चारों दिशावर्ती चार पंक्तियाँ आई हैं और उस उस कल्पमें चारों पंक्तिके प्रारम्भके संगमस्थानमें अर्थात् प्रतरके मध्य भागमें इन्द्रक विमान आए हैं। साथ ही उस उस कल्पगत प्रत्येक पंक्तिके आंतरेमें पुष्पावकीर्ण विमान आए हैं, वैसे आवलिकागत विमानोंके परस्पर अन्तरमें भी [ पुष्पा०] विमान आए हैं / ___ इनमें 'पंक्तिगत' विमान श्रेणीबद्ध होनेसे 'आवलिकागत' विमानोंके नामसे प्रचलित हैं। और पंक्तियोंके आंतरों में तथा विमानोंके आंतरोंमें रहे विमान आवलिकागत (पंक्तिबद्ध ) नहीं किन्तु इधर-उधर यथेच्छस्थानमें 'बिखरे पुष्पोंकी' तरह अलग अलग वर्तित होनेसे 'पुष्पावकीर्ण' कहते हैं / आवलिकागत विमानोंका आकार अमुक क्रममें नियत है, जब कि पुष्पावकीर्णोके आकार विविध प्रकारके हैं / (जो बात ग्रन्थकार आगे कहनेवाले हैं।) अब उनमें सौधर्मकल्पमें प्रथम प्रतरमें चारों दिशाओं में चार पंक्तियाँ आई हैं / प्रत्येक पंक्तिमें बासठ बासठ विमान हैं, दूसरे प्रतरमें उक्त कथन अनुसार पंक्तिके अन्तिम छोरसे एक एक विमान हीन करनेसे प्रत्येक पंक्तिमें इकसठ विमान रहते / तीसरे प्रतरमें इस तरह करनेसे (चार पंक्तियोंमें अन्तिम भागसे एक एक हीन करनेसे ) साठ साठ विमान रहते, इस तरह प्रत्येक प्रतरमें करते करते अन्तिम प्रैवेयकमें दो दो विमानोंकी श्रेणी और अन्तिम-सर्वार्थसिद्धि प्रतरमै अर्थात् अनुत्तर कल्पमें चारों बाजू पर. सिर्फ एक एक विमान अवशिष्ट रहता है / यह दिशागत श्रेणी सद्भावकी बात कही / / 95 ]