________________ 254 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 232 . . ७–प्रतिमण्डलमें दृष्टिपथप्राप्तिप्ररूपणा- .. - किसी भी मण्डलमें दृष्टिपथका अन्तर निकालनेके लिए प्रथम दिवसमें सूर्य कितने क्षेत्रको प्रकाशित करता है यह जानना चाहिए, इसके लिए विवक्षित जिस मण्डलमें दृष्टिपथ निकालना हो उस मण्डलमें सूर्यका जो मुहूर्त गतिमान हो उसे एक बाजू पर रक्खो, तथा उसी इच्छितमण्डलमें जो दिनमान वर्तित हो उस रकमका मुहूर्तगतिमानके साथ गुना करो, जो माप आवे उतने योजनका क्षेत्र एक दिवसमें प्रकाशित करे / अब यहाँ एक नियम है कि विवक्षित जिस मण्डलमें सूर्य जितने क्षेत्रको प्रकाशित करे उससे बराबर अर्धक्षेत्र प्रमाण दूर रहे हुए मनुष्योंको (जैसे कि सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें सूर्यकी मुहूर्त गति 5251 24 योजन है और दिनमान 18 मुहूर्त वर्तित है | 5251 29 भाग . दोनों रकमको गुना करनेसे)९४५२६१३ | .94518 यो० योजनका तापक्षेत्र अथवा उदय-अस्त . 29x बिचका (मण्डलश्रेणी में ) अन्तर कर्क 94526 यो० 43 अंतर 605228 यो०१२ भाग संक्रांतिके दिनों में प्राप्त होता है। अब उसका अर्ध करने पर | सर्वाभ्यन्तर मुहूर्त गति सूर्य दृष्टिगोचर हो अतः किसी भी मण्डलमें सूर्य अर्ध दिवसके द्वारा (9 मु.) जितने क्षेत्रको प्रकाशित करता है, उतने क्षेत्रके लोगोंको सूर्य उतनी दूरसे दृष्टिगोचर होता है और साथ ही उतनी ही दूरसे अस्तपनेमें दीखता है। [94 5251 34 = 47263 337 47263 33 यो० का दृष्टिपथ अन्तर सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें होता है। सर्वाभ्यन्तरसे दूसरे मण्डलमें दृष्टिपथ अन्तर 47179 यो० 1 और 24 अर्थात् लगभग 47179 10 यो० रहता है / अतः सर्वाभ्यन्तरमण्डलके दृष्टिपथमानमेंसे लगभग 84 33 - 13 योजनकी हानि हुई / इस ‘शोध्यराशि की हानि प्रायः प्रतिमण्डलमें करनेकी है। ( परन्तु प्रायः शब्दसे विशेष यह समझना कि आगेके मण्डलोंमें क्रमसे क्वचित् 8485 यो०, अन्तिममण्डलों में कहीं कहीं 85; उससे भी किंचित् अधिक हानि करना ) इस तरह तीसरे मण्डलमें उस शोध्यराशिकी हानि होनेसे 47086 33 -17 यह तीसरे मण्डलका दृष्टिपथ अन्तर समझना। इस तरह उक्त आम्नायके अनुसार प्रतिमण्डलमें दृष्टिपथ निकालते सर्वान्त्यमण्डलमें 31831 3 योजनका दृष्टिपथप्रमाण प्राप्त होगा। सर्वबाह्यसे लौटते हुए गणितके हिसाबसे पूर्व दक्षिणायनमें शोध्यराशिकी जो हानि करते थे उसके बदले अब उत्तरायणमें उस राशिकी प्रतिमण्डल वृद्धि करते जाए (यहाँ भी विपरीत क्रमसे साधिक 85-84-83 24 यो० की तरह सर्वाभ्यन्तरमण्डलके पर्यन्त स्वयं