________________ विदेहादि क्षेत्रमें तीन मुहूर्त विषयक विचारणा ] गाथा 86-90 [ 237 यह सिद्ध हुआ कि-समग्र संवत्सरमें बड़ेसे बड़ा (सबसे बड़ा) एक ही दिवस और छोटेसे छोटा (सबसे छोटा ) भी एक ही दिवस हो, शेष किसी भी मण्डलमें रात्रिमान तथा दिनमान घट-बढ़ प्रमाणवाला हो। विदेहादि क्षेत्रमें तीन मुहूर्त विषयक विचारणाजब मेरु पर्वतके दक्षिणार्द्ध भागमें (निषधसे शुरू हुआ सूर्य स्वचारित अर्द्धमण्डलके मध्यभागमें आवे तब) और उत्तर भागमें-उत्तरार्द्ध अर्थात् नीलवन्त पर्वतसे शुरू होता सूर्य जब स्वचारित उत्तरकी तरफ चरनेके मण्डलके मध्यभागमें आवे तब-इस तरह दोनों विभागों में ऐरवत और भरतक्षेत्रमें दोनों सूर्य परस्पर समश्रेणी में आए हुए हो तब सूर्यके अस्तित्त्वके कारण दिवस वर्तित हो उस वक्त मानो दिवसके तेजस्वी-देदीप्यमान-उग्र स्वरूपसे रात्रि भयभीत बनकर. अन्यक्षेत्रमें गई न हो ? इस तरह सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें होनेसे जघन्य 12 मुहूर्त मानवाली रात्रि पूर्व (पूर्वविदेहमें ) और पश्चिम (पश्चिमविदेहमें ) दिशामें गई होती है। अब जब मेरुपर्वतकी पूर्व और पश्चिम दिशामें (दोनों विदेहोंमें ) सूर्य वर्तित हो और इससे वहाँ दिवसका अस्तित्व हो तब पूर्ववत् दक्षिण और उत्तर दिशागत जो (भरतऐश्वत ) क्षेत्र हैं उनमें पूर्वविदेहमें जिस तरह रात्रि बताई थी उस तरह यहाँ भी उतने ही मानवाली ( 12 मुहूर्तकी ) जघन्यरात्रि वर्तित होती है / इससे यह तो स्पष्ट ही समझना कि-जिन जिन क्षेत्रोंमें जिस जिस कालमें(जिस जिस मण्डलमें ) रात्रिमान 12 मुहूर्त्तका हो, वहाँ उन्हीं क्षेत्रों में उस उस कालमें दिनमान अवश्य उत्कृष्ट प्रमाणवाला (18 मुहूर्त) हो; क्योंकि सबसे जघन्यमें जघन्य रात्रिमान-१२ मुहूर्त तकका होता है, और सबसे उत्कृष्टमें उत्कृष्ट दिनमान 18 मुहूर्त तकका हो सकता है। ... इस कारणसे जहाँ रात्रि सबसे लघुतम-जघन्य हो तब उस उस क्षेत्रगत दिवस सर्वोत्कृष्ट प्रमाणवाला हो ही ! और जिस जिस मण्डलमें-जिस जिस कालमें रात्रि अथवा दिवसका प्रमाण (पूर्वोक्त दिवस या रात्रिके जघन्य 12 मुहूर्त और उत्कृष्ट 18 मुहूर्त्तके यथार्थ प्रमाणमेंसे) जिन जिन क्षेत्रोंमें जितने जितने अंशसे घट-बढ़वाला हो, तब उन्हीं क्षेत्रों में उस काल रात्रि और दिवसका दिनमान भी घट-बढ़वाला होता है। ... यहाँ इतना अवश्य समझ ले कि किसी भी क्षेत्रमें-किसी भी मण्डलमें-किसी भी कालमें अहोरात्र प्रमाण तो तीस मुहूर्त्तका ही होता है / ( यद्यपि इतरों में ब्रह्माकी अपेक्षा अलग है।) किसी भी क्षेत्रमें, किसी भी कालमें उस अहोरात्रकालमें कदापि फेर-फार हुआ नहीं और होगा भी नहीं, रात्रि अथवा दिवसका प्रमाण भले ही घट-बढ़वाला हुआ