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________________ 234 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 . देखते हैं, अर्थात् इससे दिनमान 23 संकीर्ण होता जाता है और रात्रि 24deg लम्बी होती जाती है। ये सूर्य जब सर्वबाह्यमण्डलमेंसे पुनः लौटते द्वितीय मण्डलसे लेकर उत्तराभिमुख गमन करते हुए जम्बूद्वीपमें प्रविष्ट होकर सर्वबाहृमण्डलकी अपेक्षा उत्तर दिशामें रहे सर्वाभ्यन्तर-प्रथममण्डलमें आवे तब दूसरे मण्डलसे सर्वाभ्यन्तरमण्डल तकके 183 मण्डलोंका परिभ्रमणका 6 मास प्रमाणकाल -- उत्तरायण'का काल कहलाता है, दक्षिणायन पूर्ण होने पर अंतिम मण्डल वर्ण्य द्वितीय मण्डलमें -- उत्तरायण 'का प्रारम्भ हो, वहाँसे सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी ओर बढ़ता होनेसे पहले उस सूर्यके प्रकाशमें दक्षिणायन प्रसंग पर हानि होती थी उसके बदले अब क्रमशः उसके तेजमें वृद्धि होती जाए और प्रकाश-क्षेत्रं बढ़ाता जाए जिससे उन उन क्षेत्रों में क्रमशः दिनमान बढ़ता जाए और रात्रिमान घटता जाए / विशेषतः यहाँ यह भी समझना कि सौरमास-सूर्यसंवत्सर-दक्षिणायन-अवसर्पिणीउत्सर्पिणी-युग-पल्योपम-सागरोपम इत्यादि सर्व कालभेदोंको समाप्त होनेका प्रसंग किसी. भी मण्डलमें अगर आता हो तो सर्वाभ्यन्तरमण्डल पूर्ण होते ही अर्थात् केवल दक्षिणायन अथवा कर्कसंक्रातिके प्रथम दिन आषाढी पूर्णिमाको आता है / और साथ ही सर्व प्रकारके कालभेदोंका प्रारम्भ सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें द्वितीय मण्डले अर्थात् दक्षिणायनके छमाही कालके प्रथम दिवसके प्रारम्भके साथ ही सावन वदि 1 को (गुजराती ) आषाढ़ वदि 1 को, अभिजित् नक्षत्रयोगमें प्रावृद् ऋतुके आरम्भमें भरत ऐश्वत में दिवसके आदिमें और विदेहक्षेत्र में रात्रिके प्रारम्भमें युगका आरम्भ होता है / ___ इस तरह सर्वबाह्यमण्डलमेंसे आभ्यन्तरमण्डलमें आते प्रत्येक सूर्यको प्रत्येक मण्डलमें एक एक अहोरात्रिकाल (स्वस्व अर्ध-अर्धमण्डल चरते ) होता जाता है / इस तरह सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे सर्वबाह्यमण्डलमें जानेवाले सूर्यको भी प्रतिमण्डल एक एक अहोरात्रिकाल होता है। उत्तरायण-दक्षिणायनका सारा (183 + 183 ) काल इकट्ठा करने पर 366 दिवस प्रमाण होता है / जो दिवस एक संवत्सरप्रमाण है / / इति द्वितीय द्वार प्ररूपणा // ___३–संवत्सरके प्रत्येक रात्रि-दिवसोंकी प्रमाण प्ररूपणा जब दोनों सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें दक्षिणके तथा उत्तरके अर्धमण्डलों में हों तब दिनमान उत्कृष्टमें उत्कृष्ट अठारह मुहूर्तप्रमाण होता है, क्योंकि उत्तरायणकाल पूस माससे शुरू होकर आषाढमासमें छः मास काल पूर्ण होनेको हो तब वह काल अंतिम सीमा पर 239-240. इस समय दक्षिणायन होनेसे पूर्व दिशामें भी हररोज दक्षिणकी तरफ खसकता खसकता सूर्य दक्षिण दिशाकी तरफ उदय पाता हुआ दीखता है और उत्तरायगमें पूर्व दिशामें भी उतरकी तरफ खसकता खसकता सूर्य उत्तरकी तरफ उदित होता हो वैसा दीखता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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