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________________ सूर्यमण्डलोंका चारक्षेत्र प्रमाण और अन्तरप्रमाण ] गाथा 86-90 [ 215 सूर्यमण्डलका चारक्षेत्रप्रमाण लानेका दूसरा उपायसूर्य विमानका विष्कम्भ 6 भागका होनेसे और सूर्यके मण्डल 184 होनेसे उस 184 मण्डल संख्याका इकसठवाँ भाग निकालना, एक मण्डलका विस्तार इकसठवाँ 48 भाग प्रमाण होनेसे उस भागको 184 मण्डलोंसे गुना करें, जो संख्या आवे उसे एक बाजू पर रक्खें / अब 184 मण्डलोंके 183 आंतरोंका इकसठवाँ भाग निकालें, इसके लिए प्रत्येक अन्तरका प्रमाण जो दो योजनका है उसे आंतरेके साथ गुना करे, ऐसा करने पर इस अन्तरक्षेत्रके इकसठवें भागोंकी जो संख्या आवे उस संख्यामें प्रथमके 184 मण्डल विषयक विष्कम्भके इकसठवें भागोंकी जो संख्या उसे प्रक्षिप्त करके दोनोंका जोड करें, इससे जो संख्या प्राप्त हो उस भागसंख्याके योजन करनेके लिए उसे ६१से बटा करे, जिससे 510 यो० / सूर्यका चारक्षेत्र प्राप्त होगा / वह इस तरह१८४४ 48 = 8832 भाग विमान विस्तारके, 183 4 2 = 366 योजन अन्तरक्षेत्र विस्तारके 461 22326 इकसठवें भाग आए / 8832 भागों में 61) 31158 ( 510 यो० +22326 305 31158 इकसठवें भाग 0065 61 = 510 यो० 46 भाग चार क्षेत्र प्रमाण / इति चार क्षेत्र प्ररूपणा // 1 // - 048 048 2: सूर्यमण्डलका दो योजनका अन्तरप्रमाण लानेकी रीति प्रथम तो सूर्यमण्डलोंका 510 यो० 6 भागप्रमाणका जो चारक्षेत्र है उसके इकसठवें भाग कर डालें, पश्चात् सूर्यके मण्डलोंकी १८४की संख्याके साथ प्रति मण्डलके विस्तारका अर्थात् इकसठवें 48 भागके साथ गुना करें, गुना करनेसे जो संख्या आवे उसे, 510 यो० / चारक्षेत्रके आए इकसठवें भागोंकी संख्यामेंसे कम करें, जिससे शेष क्षेत्रांश प्रमाण . [183 अन्तरक्षेत्र प्रमाण ] रहेगा / इस क्षेत्रांशके आए भागोंके साथ प्रत्येक मण्डलका [2 योजनका ! अन्तर प्रमाण लानेको १८३से बटा करें, बटा करनेसे इकसठवें भागोंकी जो संख्या प्राप्त हो, उसके पुनः योजन करनेके लिए इकसठसे बटा करें / जिससे दो योजन (परस्पर) सूर्यमण्डलका अन्तरप्रमाण प्राप्त होगा जैसे कि
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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