________________ चन्द्रमण्डल और सूर्यमण्डलमें तफावत ] गाथा 86-90 [213 मण्डल जैसे दीखते हैं और इसलिए व्यवहारमें वह मण्डल कहा जाता है / ___साथ ही भरतादिक्षेत्रोंमें जो उष्ण प्रकाश पड़ता है वह सूर्यके विमानका है, क्योंकि सूर्यका विमान पृथ्वीकायमय है और उन पृथ्वीकायिक जीवोंके पुद्गलविपाकी आतपनामकर्मका उदय होता है, अतः स्वप्रकाश्यक्षेत्रमें सूर्यके उस पृथ्वीकायिक विमानका उष्ण प्रकाश पड़ता है। कुछ अनभिज्ञजन 'यह प्रकाश (विमानमें बसते) खुद सूर्यदेवका है। ऐसा मानते हैं। परन्तु उनका यह मन्तव्य वास्तविक नहीं है / यद्यपि सूर्यदेव है यह बात यथार्थ है, किंतु वह तो अपने विमानमें स्वयोग्य दिव्यऋद्धिको भोगता हुआ आनन्दमें काल व्यतीत करता है। इन चर ज्योतिषी विमानोंका स्वस्थानापेक्षया ऊर्ध्वगमन तथा अधोगमन तथाविध जगत् स्वभावसे होता ही नहीं है, सिर्फ सर्वाभ्यन्तरमण्डलमेंसे सर्वबाह्यमण्डलमें तथा सर्वबाह्यमण्डलमेंसे सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें आने-जानेके लिए वर्तुलाकारमें गमन होता, और पहले जणाये अनुसार यह ज्योतिषीदेवोंके विमानोंका ही होता है, और उन विमानों में देव सहजभावसे आनन्दसे विचरते हों यह अलग बात है / परन्तु विमानोंके परिभ्रमणके साथ देवोंका भी परिभ्रमण हो ही अथवा देवो विमानोंका जो 510 योजन प्रमाण चारक्षेत्र हो उससे विशेष क्षेत्रमें देव जा ही न सके वैसा नियम नहीं होता है / स्वैरविहारी होनेसे अपनी मर्यादाके अनुसार नंदीश्वरादि द्वीप आदि स्थानों में यथेच्छ जा सकते हैं / ___ इन ज्योतिषी निकायके देवोंका कैसा दिव्य सुख होता है ? यह बाबत पंचमांग श्री भगवतीसूत्रमेंसे अथवा तो संक्षिप्त ख्याल इसी ग्रन्थमें आगे दिए जानेवाले ज्योतिष निकाय-परिशिष्टमेंसे जान लें। . चन्द्रमण्डल और सूर्यमण्डलमें तफावत चन्द्रके 15 मण्डल हैं जबकि सूर्यके 184 मण्डल हैं / चन्द्रके 15 मण्डलोंमें से 'पांच मण्डल जम्बूद्वीपमें और दस मण्डल लवणसमुद्र में पड़ते हैं। जबकि सूर्यके 184 मण्डलोंमेंसे 65 मण्डल जम्बूद्वीपमें हैं और 119 मण्डल लवणसमुद्र में पड़ते हैं / चन्द्र विमानकी अपेक्षा सूर्य विमानकी गति शीघ्र है अतः चन्द्रमण्डलोंसे सूर्यमण्डल पास-पास पड़ते हैं / चन्द्र और सूर्यका कुल मण्डलक्षेत्र-चारक्षेत्र 510 योजन है। भाग प्रमाणका है, उसमें 180 योजन प्रमाण चारक्षेत्र जम्बूद्वीपमें है और 330 है। यो० क्षेत्र लवणसमुद्रमें होता है। सूर्यमण्डलोंमें दक्षिणायन और उत्तरायणके खास मुख्य विभाग हैं, चन्द्रमण्डलमें वैसे दो विभाग हैं, परन्तु सूर्यवत् नहीं; हैं, और व्यवहारमें भी नहीं आते / चन्द्र मण्डल 15 होनेसे (पांच अंगुलियोंके जिस तरह आंतरे चार उसी तरह) उनके आंतरेबिच 14 हैं, और सूर्यमण्डलों की संख्या 184 होनेसे उनके आंतरे 183 हैं। चन्द्रमण्डलके एक अंतरका प्रमाण 35 3 / योजन है, जब कि सूर्यमण्डलके एक अंतरका प्रमाण दो