________________ सूर्य-चन्द्रमण्डल सम्बन्धमें अधिकार ] गाथा 86-90 [ 211 'मनुष्यक्षेत्र के नामसे प्रसिद्ध हुए अढाईद्वीप (45 लाख योजन प्रमाण )का किंचित् स्वरूप कहा / इति मनुष्यक्षेत्रस्य२२६ संक्षिप्तवर्णन // इस तरह अढाईद्वीपका किंचित् स्वरूप जणानेके बाद इस अढाईद्वीपमें सूर्य तथा चन्द्रके मण्डल किस तरह होते हैं इस विषयक वर्णन किया जाता है / Occcccccccccccccca 3 // सूर्य-चन्द्रमण्डल विषयनिरूपण // [ मण्डलाधिकारकी अवतरणिका-मण्डलाधिकारमें प्रसंग प्राप्त होनेसे अढाईद्वीपका संक्षिप्त वर्णन किया। अब चन्द्र-सूर्यके मण्डल सम्बन्धी अधिकार शुरु किया जाता है। इस विषयका सूर्य प्रज्ञप्ति-चन्द्र प्रज्ञप्ति-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि सिद्धान्तोंमें सविस्तृतरूपसे आप्तमहापुरुषोंने वर्णन किया है। साथ ही बाल जीवोंके बोधके लिए पूर्वके प्राज्ञ महर्षियोंने इन सिद्धान्त ग्रन्थोंमेंसे इस विषयका उद्धार करके क्षेत्रसमास-बृहत्संग्रहणी-मण्डल प्रकरण. लोकप्रकाश प्रमुख ग्रन्थों में संस्कृत-प्राकृतमें विशेष स्पष्ट किया है, तो भी मन्दबुद्धिवाले जीव इस विषयको रुचिपूर्वक अधिक समझ सके इसलिए श्री सूर्यप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों के आधार पर भाषामें इस मण्डल विषयक विषयको कुछ स्फुट करके कहा जाता है। / यद्यपि यह लिखावट पाठकोंको कुछ विशेषतः लगेगा, परन्तु गुर्जर भाषामें अब तक इस विषयके बारेमें आवश्यक स्पष्टता प्रायः किसी अनुवादग्रन्थमें किंवा स्वतन्त्र ग्रन्थमें ' नहीं देखी जाती अतः मण्डल विषयक इस विषयको सरल करना जिससे अभ्यासियोंकी ज्ञानसमृद्धि बढ़े और तद्विषयक रस-पिपासा तृप्त हो, इस इच्छासे इस विवेचनका विस्तार स्व-पर लाभार्थ कुछ ज्यादा किया है और अतः प्रायः मेरा निश्चित मन्तव्य है कि 226. अढाईद्वीपके बाहर नहीं होनेवाले पदार्थ जम्बूद्वीपमें गंगादि नदियोंकी तरह शाश्वत नदियाँ, पइ द्रहादि शाश्वत द्रह, सरोवर, पुष्करवर्त्तादि कुदरती मेघ, मेघकी स्वाभाविक गर्जनाए, बादर अग्नि, (सूक्ष्म तो सर्वव्यापक हैं) तीर्थकर चक्रवर्त्यादि 63 शलाका पुरुष, मनुष्यका जन्म तथा मरण, समय-आवलिका-मुहूर्त-मास-संवत्सरसे लेकर उत्सर्पिण्यादि काल तथा जम्बूद्वीपकी तरह वर्षधरादि जैसे पर्वत ( कतिपय स्थानों में शाश्वता पर्वत हैं परन्तु अल्प होनेसे विवक्षित नहीं लगते ) ग्रामनगर-चतुर्विध संघ तथा खान-निधि-चन्द्र-सूर्यादिका परिभ्रमण तथा क्षेत्रप्रभावसे ही-प्रयोजनाभावसे इन्द्रधनुषादि आकाशोत्पात सूचक चिह्न ये सर्व वस्तुएँ अढाईद्वीपके बाहर नहीं हैं / णईदहघणथणियागणि-जिणाइ गरजम्ममरणकालाई / , पणयाललक्खजोयण-णरखित्त मुत्तु णो पु (प) रओ // 9 // [ल. क्षे. स.]