________________ बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी ] गाथा 3-4 [21 तरफका, इस तरह हरएक निकायमें दो दो विभाग जोड़ (युग्म ) में रहे हैं। इस तरह दसों निकायोंके मिलकर बीस विभाग हैं। प्रत्येक विभागके मध्यमें इन्द्रका एक एक निवास है। इस प्रकार बीस विभागके मिलकर कुल बीस इन्द्र भवनपति-निकायके कहे हैं। उसमें पहले असुरकुमार निकायमें दक्षिण दिशाके विभागमें रहनेवाले असुरकुमार देवोंके अधिपति चमरेन्द्रका उत्कृष्ट आयुष्य एक सागरोपमका है। उसी असुरकुमार निकायकी उत्तरदिशाके इन्द्र-बलीन्द्रका उत्कृष्ट आयुष्य एक सागरोपमसे कुछ विशेष है। चमरेन्द्रकी इन्द्राणीका उत्कृष्ट आयुष्य साढेतीन २४पल्योपमका है और बलीन्द्रकी देवीका उत्कृष्ट आयुष्य साढेचार पल्योपमका है। इस तरह पहले निकायके दक्षिणेन्द्र तथा उत्तरेन्द्रकी आयुष्यस्थिति कही। शेष नौ निकायके दक्षिणेन्द्रों तथा उत्तरेन्द्रोंकी स्थिति कहते हैं / दक्षिणदिशाकी तरफके नवों निकायों के धरणेन्द्र-प्रमुख नवों इन्द्रोंका उत्कृष्ट आयुष्य डेढ़ पायोएमका जाने, अर्थात् उनमेंसे प्रत्येक इन्द्रकी आयु-स्थिति समान है। इस तरह उत्तरदिशाकी तरफके नवों निकायों के भूतानन्देन्द्रप्रमुख नवों इन्द्रोंकी उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति देशे अर्थात् कुछ न्यून दो पल्योपमकी जाने। भवनपति निकायके देव-देवियोंके जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्यका यंत्र असुरकुमार निकाय दिशाके देव-देवी / जघन्य-आयुष्य / उत्कृष्ट-आयुष्य दक्षिण दिशाके देवका | दस हजार बर्ष 1 सागरोपम ,, दिशाकी देवीका 33 पल्योपम | उत्तर दिशाके देवका 1 सागरोपमसे कुछ अधिक दिशाकी देवीका | 43 पल्योपम दक्षिण दिशाके देवका दस हजार वर्ष / 13 पल्योपम ,, दिशाकी देवीका 3 पल्योपम उत्तर दिशाके देवका देशे न्यून दो पल्योपम ,, दिशाकी देवीका | ,, ,, एक पल्योपम नागकुमार आदि नव निकाय - 24. हरएक निकायका पर्यालोचन करेंगे तो देवोंसे देवियोंका आयुष्य बहुत कम मालूम होगा / इसका कारण सोचते लगता है कि देवलोक यह भोगलोक है, अतः उत्कृष्टायुषी देवोंके जीवनकाल दरम्यान अनेक नूतनतम देवियोंके संयोग और वैषयिक सुखोंके भोगके लिए वह आवश्यक होगा और उसके द्वारा देव पूर्वके पुण्यको भोग द्वारा समाप्त कर डालते हैं /