________________ 16 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-१ त्रैलोक्यदीपिका नामक ग्रन्थके इस ग्रन्थमें वर्णन करने योग्य द्वारोंका संक्षिप्तमें विवरण करूँगा। चौदह राजलोकवर्ती देहधारी सभी संसारी जीवोंका देव, नारकी, तिथंच और मनुष्य इन चार विभागोंमें समावेश हो जाता है। देवोंमें भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक आदि भेद हैं। धर्मा, वंशा, शेला, अंजना, रिष्टा, मघा और माघवती इस तरह सात नरक पृथ्वीमें, सर्व नारकीय जीवोंका समावेश है। जलचर, स्थलचर, खेचर, उरंःपरिसर्प, भुजपरिसर्प, एकेन्द्रिय, द्विइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यवपंचेन्द्रिय और संज्ञी तिर्यंचपंचेन्द्रिय ये सर्व भेद तिथंच गतिके हैं। मनुष्य भी कर्मभूमि, अकर्मभूमि, तथा अन्तरद्वीपके होते हैं और वे संमृर्छिम और गर्भज, ऐसे भिन्न भिन्न विभागों में विभक्त हैं। इस तरह इन जीवोंका समावेश देव, नारक, मनुष्य और तिथंच ऐसे चार विभागों में होनेके कारण ये चार विभाग [ और उनके उप विभाग ] -इनके आश्रय पर किस जीवकी कितनी आयु स्थिति है ? कितनी अवगाहना और शरीरप्रमाण आदि हैं ? इत्यादी मुख्य 9 और गौण 34 द्वारोंकी परिभाषा एवं 'च' शब्दसे दूसरी भी कुछ उपयोगी और प्रासंगिक जानने लायक परिभाषाएँ ग्रन्थकर्ता करनेवाले हैं जो इस प्रकार हैं -: मुख्य (नौ ) 9 द्वार और गौण 34 द्वार :1. स्थिति-उस, निश्चित भवमें प्रवर्तमान जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट आयुष्य प्रमाण / 2. भवन–देव तथा नरक गतिके जीवों के उत्पन्न होनेके स्थान / 3. अवगाहना-जीवोंका जघन्य [ कमसे कम ] और उत्कृष्ट शरीरप्रमाण / 4. उपपातविरह- एक जीव उत्पन्न होनेके बाद दूसरा जीव कब उत्पन्न हो ? उसके सम्बन्धमें जघन्य और उत्कृष्ट अवधि / 5. च्यवनविरह - एक जीवकी मृत्यु [च्यवन] होनेके बाद दूसरा झीव कब च्यवित हो (मृत्यु हो) उस सम्बन्धमें जघन्योत्कृष्ट अवधि। 6. उपपातसंख्या - देवादिक विवक्षित गतिमें एक समयमें एक साथ कितने जीव उत्पन्न होते हैं वह। 7. च्यवनसंख्या-देवादि गतियों मेंसे एक समय पर कितने जीव एक साथ च्यवित हो (मृत्यु हो) वह / 8. गति-किस किस गतिके जीव मृत्यु पाकर किस किस गति-स्थानकों में जाए वह /