________________ विविध समुद्रजलका विविध प्रकार ] गाथा 76-77 [ 153 दूध जैसे स्वादवाला पानी जिसमें है वह और धृतवर-उत्तम १७१घीके समान स्वादवाला जल जिसमें होता है वह / दूसरा कालोदधि, तीसरा पुष्करवर और चरिम अर्थात् अंतिम स्वयंभूरमण ये तीनों समुद्र प्राकृतिक १७२जल जैसे स्वादवाले हैं और शेष समग्र (असंख्यात) समुद्रस्वाभाविक १७३इक्षु = ईखके रसके समान आस्वादवाले हैं। ___ इन सर्व समुद्रोंमेंसे लवणसमुद्रमें उत्सेधांगुलके मापसे 500 योजनके, दूसरे कालोदधि समुद्रमें 700 योजनके और अंतिम स्वयंभूरमणसमुद्रमें 1000 योजनके उत्कृष्ट प्रमाणवाले व्हेल-मत्स्य (मगरमच्छ ) आदि होते हैं। उसके अतिरिक्त शेष समुद्रोंमें उक्त प्रमाणसे क्रमशः न्यून और भिन्न भिन्न प्रमाणवाले मत्स्यादि होते हैं। ऊपर कथित तीनों समुद्रोंमें विशेषतः बहुत मत्स्य होते हैं, जबकि अन्य समुद्रोंमें अल्प होते हैं। विशेषमें लवणसमुद्रमें सात लाख कुलकोटि मत्स्य, कालोदधिमें नौ लाख कुलकोटि और स्वयंभूरमणसमुंद्रमें साढे बारह लाख कुलकोटि मत्स्य होते हैं / सर्वसमुद्राश्रयी जलस्वाद तथा मत्स्य प्रमाणका यंत्र / नाम जलस्वाद मत्स्य प्रमाण लवण संमुद्रका लवण (खारा) पानी है 500 योजन उत्कृष्ट कालोदधि , मेघ जलवत् 700 यो. " पुष्करवर , छोटे छोटे प्रमाणवाले वारुणिवर ,, मदिराके समान क्षीरवर , दूधके समान घृतवर . " गायके घृतके समान असंख्यात, सर्व इक्षु रसके समान अलग अलग , स्वयंभूरमण , बरसातके वारिवत् | 1000 यो. उत्कृष्ट ,, . 171. यह पानी पीके तुल्य अर्थात् घी नहीं परंतु उसके जैसे स्वादवाला होता है, क्योंकि घी जैसा होता तो उससे पूरी आदि तली जा सकती है, परंतु वैसा बनता नहीं / __ 172. अतिशय निर्मल, सुंदर और हल्का (आहार शीघ्र पचावे वैसा) और अमृत जैसी मिठासवाला पानी समझें / 173. यह पानी ईखके रस जैसा स्वादवाला, परंतु ईखका रस न समझें / यह पानी चतुर्जातक (तज, इलायची, केसर और कालीमिर्च) वस्तुको, चार सेर ईखके रसमें डालकर उबालते उबालते तीन सेर जल जाने पर एक सेर शेष रहने पर उसे पीनेसे, उसमें जिस प्रकारकी मिठासका अनुभव प्राप्त हो, उससे अधिक मिठास इन सर्व समुद्रोंके जलकी जानें / बृ. सं. 20