________________ 134 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-६१ समाधान-राहुका विमान आधा योजन प्रमाण है और चन्द्रविमान 56 योजन प्रमाण ( लगभग दुगुना ) है / अब राहुका विमान चन्द्रमाके नीचे जितने भागमें रहा हो उतने भागके नीचे अन्धकार छा जाता है इसके बारे में किसीका भी विरोध नहीं हो सकता, परंतु अवशिष्ट रहे चन्द्रविमानका प्रकाश क्यों किसी भी दूसरे क्षेत्रमें अनुभूत नहीं होता ? इस प्रश्नके उत्तरमें यह समझना चाहिए कि, राहुका विमान चन्द्रविमानको संपूर्णतया आच्छादित तो नहीं कर सकता परन्तु जैसे दावानलसे उठे हुए धुएँके समूहसे महान विस्तारवाला ऐसा आकाशमण्डल भी जिस तरह अन्धकारसे व्याप्त हो जाता है उसी तरह राहुविमान श्याम होनेसे अत्यन्त श्यामवर्णके १५५विस्तृत कान्तिसमूहसे महत् प्रमाणयुक्त ऐसा शशिमण्डल भी समग्र रूपमें आच्छादित हो जाता है, जिससे यहाँ सर्वत्र श्यामकान्ति दिखती है / ' ऐसा कतिपय प्राज्ञ पुरुष समाधान देते हैं / दूसरे विबुधजन (विद्वान् , चतुर ) ऐसा समाधान करते हैं कि ग्रहके विमानका गव्यूत (आधा योजन) प्रमाण वह प्रायिक है। और प्रायः शब्द किसी निश्चित अर्थका . दर्शक नहीं है जिससे गव्यूत प्रमाणसे भी राहुग्रहका विशेष प्रमाण लें अर्थात् 1 योजन .. लम्बा-चौड़ा और बत्तीस भाग जितना मोटा लें तो किसी भी प्रकारकी प्रायः शब्दकी अपेक्षासे कठिनाई उपस्थित नहीं होती है। उक्त प्रमाण राहुके विमानका लेनेसे शशिमण्डलसे भी उसका प्रमाण बढ़ जानेसे शशिमण्डलको, स्वविमानसे सुखपूर्वक आच्छादित करे, उसमें किसी भी प्रकारका विरोध संभवित नहीं है। जिनभद्रगणी महाराज संग्रहणीकी गाथामें राहुके विमानका प्रमाण देते हुए एक योजन आयाम-विष्कम्भ और उससे त्रिगुण परिधि और 250 धनुषकी मोटाई बताते हैं / // ग्रहणसम्बन्धी किंचित् स्वरूप / / ग्रहणकी उत्पत्ति पर्वराहुके ही संयोग पर आधार रखती है / चन्द्रग्रहण-पर्वराहु अपनी गतिमें चलता चलता चन्द्रमाकी कांतिको आच्छादित करता यथोक्तकालमें चन्द्रके नीचे जब संपूर्ण आ जाए तब चन्द्रको वह यथायोग्य ढंकता है; तब लोकमें ग्रहण हुआ ऐसा कहा जाता है / सूर्यग्रहण-पूर्वोक्त रीतिसे पर्वराहु जब सूर्यकी लेश्याको यथोक्तकालमें आच्छादित करता है तब सूर्यका उपराग होनेसे सूर्यग्रहण होता है। यह सूर्यग्रहण जघन्यसे छः मास पर और उत्कृष्टसे अड़तालीस वर्ष पर होता है, ऐसा जैनशास्त्र कहता है / . 155. श्री भगवतीसूत्रके टीकाकार ग्रहके विमानका गव्यूत प्रमाण भी प्रायिक बतलाते हैं। और बारहवें शतकके पांचवें उद्देशामें राहुका विमान चन्द्रविमानसे लघु है ऐसा सूचित करते हैं, इस सूचनसे विमानसे नहीं लेकिन उस विमानकी विस्तृत श्यामप्रभासे ही आच्छादन जणाते हैं / सत्य सर्वज्ञगम्य /