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________________ बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी ] गाथा-१ [13 कर्ता परमोपकारी प्रातःस्मरणीय श्रीमान् चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज प्रस्तुत ग्रन्थके प्रारम्भमें 'नर्मिर्ड अरिहंताई' पदसे इष्टदेवको भावनमस्काररूप भावमंगल करते हुए 'श्री संग्रहणी रत्न सूत्र' का आरम्भ करते हैं। राग, द्वेष और मोह नामके दुर्धर शत्रुओंका जिन्होंने निर्मूल नाश किया है, अठारह दूषणोंसे जो रहित हैं, अशोकवृक्षादि. अष्ट-महाप्रातिहार्यकी शोभासे जो विभूपित हैं, चौंतीस अतिशय और वाणीके पैंतीस गुणोंको जो धारण करते हैं, केवलज्ञान [ त्रैकालिक ज्ञान ] के बलसे जिन्होंने लोक और अलोकके समस्त भावोंको हस्तामलकवत् यथार्थरूपमें देखा है ८'अरिहंत' परमात्माको तथा 'अ' शब्दसे ज्ञानावरणीयादि अष्टकर्मोंका सम्पूर्ण क्षय करके, अनन्त ज्ञानादि महान् “अष्टगुणोंको प्राप्त करके जिन्होंने शाश्वत, अव्याबाध, अनन्तसुखके स्थानरूप मोक्ष प्राप्त किया है, अब जिनको १°जन्मजरामरणका अभाव हो गया है। संसारमें पुनर्जन्म लेनेका रहा नहीं है। ऐसे सिद्ध परमात्माओंको, साथ ही ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपोचार और वीर्याचार इन पंच प्रकारके आचारोंको स्वयं पालनेवाले, इन पंचाचारका पालन करनेके लिए अन्य भव्य आत्माओंको उपदेश देनेवाले तीर्थकरादि अतिशयशाली पुरुषों के अभावमें शासनके नायकके समान. 6. भावमंगलका विशेष वर्णन आवश्यादिक बहुतसे ग्रंथोंमें दिया गया है इसीलिए वही देखें / 7. अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि दिव्य-ध्वनिश्चामरमासनं च / भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् // 1 // 8. अरिहन्त किसे कहा जाए ? अरिहन्ति वंदण-नमसणाणि, अरिहन्ति पूय-सक्कारं / सिद्धिगमणं ' च अरहा, अरहंता तेण वुच्चंति // 1 // अविहं पि य कम्मं अरिभूअं होइ सयलजीवाणं / ते कम्ममरिहन्ता अरिहंता तेण वुच्चति // 2 // [श्री भगवती टीका ] 9. सिद्धके आठ गुण कौनसे ? अथाष्टसिद्धगुणाः :-नाणं च दंसणं चिय, अव्वाबाहं तहेब संमत्तं / अक्खयठिई-अरूवी अगुरुलहू-वीरियं हवई // 1 // 10. रोगमृत्युजराधर्ति हीना अपुनरुद्भवाः / अभावात्कर्महेतूनां दग्धे बीजे हि नाफुरः / / 1 // लो० प्र० दग्वे बीजे यथाऽत्यन्तं, प्रादुर्भवति नाङ्कुरः / कर्मबीजे तथा दग्धे नारोहति भवाङ्कुरः // 1 // [त. भा० सम्बन्धकारिका]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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