________________ मनुष्यक्षेत्रके बाहर स्थिर ज्योतिषीके विमानोंका प्रमाण] गाथा 57-58 [ 125 ज्योतिथी देवोंके विमान निरंतर जम्बूद्वीपके मेरुकी प्रदक्षिणा करते हुए परिभ्रमण करते रहते हैं। पहले अढाईद्वीपवर्ती चरज्योतिषीयोंके विमानोंका जो प्रमाण कहा है उससे सब प्रकारसे अर्ध अर्ध प्रमाणवाले स्थिरज्योतिषीका विमान समझें। वे इस तरह // मनुष्यक्षेत्रके बाहर स्थिरज्योतिषीके विमानोंका प्रमाण // [ लम्बाई-चौड़ाई ] [ ऊँचाई ] 1. चन्द्रविमान-एक योजनके अट्ठाइस बटे इकसठवें भागका 14 भाग 2. सूर्यविमान-एक योजनके चौबीस बटे इकसठवें भागका 13 भाग 3. ग्रहविमान-एक कोसका 0 // कोस 4. नक्षत्रविमान-आधे कोसका / कोस 5. ताराविमान-1 (500 धनुष) कोस लम्बा - कोस (250 धनुष) अवतरण-इस मनुष्यक्षेत्रमें स्थित चरज्योतिषी विमानोंकी गतिके सम्बन्धमें तरतमता और उन विमानोंको वहन करनेवाले देवोंकी संख्या तथा वहन करनेवाले देव कौनसा रूप धारण करते हैं उसका वर्णन करते हैं: ससि-रवि-गह-नक्खत्ता, ताराओ हंति जहुत्तरं सिग्घा / विवरीया उ महड्ढिआ, विमाणवहगा कमेणेसिं / / 57 / / सोलस-सोलस-अड-चउ, दो सुर सहस्सा पुरो य दाहिणओ / पच्छिम-उत्तर-सीहा, हत्थी-वसहा-हया कमसो // 58 // गाथार्थ-चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और तारे अनुक्रमसे एकके बाद एक शीघ्र गतिवाले होते हैं और ऋद्धिकी अपेक्षासे (अर्थात् महर्द्धिकपनेसे ) विपरीत होते हैं अर्थात् एकके बाद एक अनुक्रमसे अल्प ऋद्धियुक्त होते हैं, उन पांचों ज्योतिषीदेवोंके विमानोंको वहन करनेवाले देवोंकी संख्या अनुक्रमसे सोलह हजार, सोलह हजार, आठ हजार, चार हजार और दो हजार देवोंकी होती है। और पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशामें अनुक्रमसे सिंह, हाथी, वृषभ और अश्व (घोड़ा )के रूपको धारण करनेवाले देव होते हैं / // 57-58 // विशेषार्थ- सर्व ज्योतिषीयों में चन्द्र अति मन्द गतिवाला है, चन्द्रसे सूर्य त्वरित गतिवाला है, सूर्यसे ग्रह तेज गतिवाले हैं, ( इस ग्रहमंडलमें परस्पर भी बुध नामका ग्रह शीघ्र गतिवाला, शुक्र उससे भी अधिक गतिवाला, इस तरह मंगल, बृहस्पति-गुरु, शनैश्चरादि ग्रह क्रमशः शीघ्र गतिवाले हैं ) ग्रहसे नक्षत्र विशेष शीघ्र गतिवाले हैं, नक्षत्रसे तारें विशेष गति करनेवाले हैं :