________________ लवणसमुद्र चन्द्र-सूर्य ज्योतिषीयोंके विमानोंका वर्णन ] गाथा 53-54 [ 119 दोनों बाजुकी जगतीसे ( अभ्यन्तर तथा बाह्य किनारेसे ) 95000 योजन तक जलकी अनुक्रमसे समभूमिकी सतहसे चढ़ता हुआ जल 700 योजन ऊँचा हो जाता है जिससे उस स्थान पर 1000 योजन गहराई और 700 योजन ऊपरकी जलवृद्धि होनेसे कुल 1700 योजन प्रमाण ऊँचा १३५जल समुद्रके तलवेकी अपेक्षासे होता है। लवणसमुद्र में मध्यके दस हजार योजनके विस्तारमें एक हजार योजनकी जो गहराई बताई उसी दस हजार योजनके विस्तारमें सामान्यतः जलकी सतह (सपाटी से सोलह हजार ( 16000) योजन ऊँची जलशिखा खड़ी चुनी हुई दीवाल अथवा गढ़के आकारके समान बढ़ती है। इस तरह समुद्रके तलभागसे लेकर 17800 योजन ऊँचा जल हुआ / ऊपरसे लेकर 16000 योजन शिखा हुई, वह शिखा उक्त प्रकारसे नीचे और ऊपर दोनों स्थानों पर 10000 योजन चौड़ी होती है, इस शिखाका जल प्रतिदिन दो बार दो कोस ऊचा चढ़ता है और भाटा (पानीका उतार )की तरह पुनः उतरता जाता है। ऐसा होनेका कारण लवणसमुद्रमें स्थित पातालकलशोंका वायु है / पूर्व वर्णित ज्योतिषीदेवोंके विमान इस जलशिखामें विचरण करते हैं / यहाँ शंका होगी कि विमान जब शिखामें विचरते हैं तो लवणसमुद्रकी शिखा समभूतलासे . 16000 योजन ऊँची होती है और ज्योतिषी समभूतलासे 790 योजनसे 900 योजन तकमें होते हैं तो लवणसमुद्रगत शिखा में रहे हुए विमान शिखामें विचरणशील होनेसे उनका पानीमें किस तरह गमन होता होगा ? इस शंकाके समाधानमें समझना चाहिए कि-लवणसमुद्र की शिखामें विचरते विमान एक तो उदकस्फटिक रत्नोंके बने हैं, इस स्फटिकरत्नका स्वभाव पानीको काटनेका है जिससे वे उदकस्फटिकमय विमान शिखाके जलको काटते काटते, किसी भी व्याघातके बिना अस्खलित गतिसे जिस तरह अन्य स्फटिकरत्नमय विमान गमन करते हैं, उसी तरह निर्विघ्नरूपसे शिखामें गति करते हैं। - तो क्या पानीके सदाकालिक स्पर्शसे स्फटिकरत्नको कुछ बाधा होती होगी सही ? और उसमें पानी किसी समय भर जानेसे वह नुकसान भी करता होगा या नहीं ? उसके स्पष्टीकरणमें उस रत्नके तेजको पानीसे किसी भी प्रकारकी हानि नहीं होती है साथ ही किसी भी समय उसमें 13 पानी भी नहीं भराता है / ये उदकस्फटिकमय विमान लवण 135. जलका सहज स्वभाव तो सम-सतह (सपाटी )में रहनेका होता है, फिर भी जिसे जलका चढ़ाव कहते हैं वह कैसे उतर जाए ? उस शंकाके समाधानमें समझना कि-प्राकृतिक रूपसे ही जल तथाप्रकारके क्षेत्रस्वभावसे ही लवणसमुद्रमें क्रमशः चढ़ता रहता है। 136. इसमें दैवीशक्ति, तथाविध जगत्स्वभाव तथा स्फटिकरत्नादिककी विशिष्टिताके योगमें कुछ भी सोचना शेष रहता नहीं है। वर्तमान युगका उदाहरण सोचें तो-पहले तथा दूसरे विश्वयुद्ध में Submarine