________________ रावण पर विजय प्राप्त करके जब श्री रामचन्द्रजी अयोध्या पधारे तब भरत, ने रामचन्द्रजी का राज्याभिषेक किया / भरत ने देशभूषण मुनि के पास अपना पूर्वभव सुना / पूर्वभव सुनकर भरत के अन्तःकरण में वैराग्य उत्पन्न हो गया / उसने मोह-माया के बन्धनों को तोड़ कर दीक्षा अंगीकार की / अन्त में एक हजार मुनियों के साथ शत्रुञ्जय तीर्थ पर आए, अनशन किया और अन्त में निवार्ण पद को प्राप्त किया / __ भरत के मोक्षगमन का समाचार सुनकर श्री राम तथा लक्ष्मणजी भी शत्रुञ्जय तीर्थ पर पधारे / इस पवित्र तीर्थ की यात्रा की / मन्दिरों की जीर्ण स्थिति देखकर सभी चैत्यों का उद्धार किया / भरत के निर्वाण स्थल पर भरत मुनि की चरण पादुका भी स्थापित की / बारहवाँ उद्धार - पाण्डव बावीसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ भगवान के शासन में हुए पाण्डवों ने इस शत्रुञ्जय तीर्थ का बारहवाँ उद्धार कराया था / पाँचों पाण्डव युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् कुन्ती माता का चरण स्पर्श करने के लिए आए और नमन करके माता का आशीर्वाद लेने के पश्चात् माँ के पास ही बैठ गए / तब माता कुन्ती ने कहा- बेटा ! इस विजय में आनन्द मनाने जैसा नहीं है | सुनकर वे काँपते स्वर से पूछने लगे- हे जगदम्बा ! हे माँ ! हमने बहुत युद्ध किए, बहुत लड़ाइयाँ लड़ी, खूब मारकाट की, अनेकों सैनिकों को जीवित ही युद्ध में मार दिया / अठारह अक्षौहिणी सेना का कच्चरघाण निकाल दिया, झूठ, माया, छल, प्रपंच आदि अनेक पाप कार्यों का आचरण करके हमने राज्यलक्ष्मी को प्राप्त किया है | माँ उन सब दृश्यों को याद करके हमारी आत्मा रो रही है / शरीर का अणु-अणु काँप रहा है / माँ इन पाप कर्मों से बचने के लिए अब हमें क्या करना चाहिए / 82