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________________ श्री शत्रुज्जय तीर्थ का प्रथम उद्धार श्री भरत महाराजा इस अवसर्पिणी काल में ऋषभदेव प्रभु प्रथम तीर्थंकर हुए / उसी प्रकार इस शाश्वत शत्रुञ्जय तीर्थ पर प्रभु के प्रथम गणधर श्री पुण्डरीकस्वामीजी पाँच करोड़ मुनियों के साथ निर्वाणपद को प्राप्त हुए / अतः यह तीर्थ पुण्डरीकगिरि के नाम से प्रसिद्ध हुआ / एक बार प्रभु श्री ऋषभदेवस्वामीजी विहार करते हुए विनितानगरी (अयोध्या) में पधारे / देवताओं ने समवसरण की रचना की / तुरन्त ही भरतचक्रवर्ती अपने अन्तःपुर आदि विशाल परिवार के साथ प्रभु की देशना सुनने के लिए गए / प्रभु ने धर्मदेशना में शासन प्रभावना, तीर्थयात्रा, संघभक्ति के महत्त्व का वर्णन किया / देशना समाप्ति के पश्चात् भरत महाराजा ने हाथ जोड़कर प्रभु से पूछाप्रभो ! संघपति का पद कैसे प्राप्त होता है ? प्रभु ने कहा- हे भरत नरेश्वर ! इन्द्र और चक्रवर्ती से भी संघपति का पद बड़ा है / जो व्यक्ति चतुर्विध संघ के साथ स्थ में प्रभु को बिराजमान करके गुरु के सान्निध्य में पैदल चलकर स्थान-स्थान पर गाँव-गाँव में धर्म की, शासन की प्रभावना करता हुआ शत्रुञ्जय रैवतगिरि आदि यात्रा करता है वह संघपति कहलाता है। प्रभु के मुख से संघ की महत्ता को सुनकर भरत महाराजा ने नाभ गणधर के सान्निध्य में इस अवसर्पिणीकाल में शत्रुञ्जय महातीर्थ का प्रथम संघ निकाला / संघ में चक्रवर्ती की ऋद्धि के साथ-साथ लाखों नरनारी थे / क्रमशः चलते-चलते संघ ने सौराष्ट्र देश में प्रवेश किया / भरत महाराजा गिरिराज की पूजा से अनभिज्ञ थे / उन्होंने किसी महर्षि से पूछा- गुरुदेव ! गिरिराज की पूजा कैसे करनी चाहिए ? 72
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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