SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्तव्य को भूल गया है। जीवन का संध्याकाल शान्त सरोवर में क्रीड़ा करने वाले हंस , के समान बिताना चाहिए परन्तु आज मानव अशान्ति में सिक रहा है। अशान्त मन को शान्ति देने वाला, भूले-भटकों को सन्मार्ग दिखाने वाला स्वाध्याय है। स्वाध्याय संजीवनी बूटी है। स्वाध्याय से मनुष्य की सुषप्त अन्तरात्मा में विवेक जागृत होता है। जिससे मनुष्य मन के कलुषित विचारों, विकारों और दुर्भावों का नाश करके परम आनन्दमय आत्म स्वरूप का दर्शन कर लेता है। परम शान्ति, आनन्द तथा ज्ञान के इच्छुक मानव के लिए सत्साहित्य का स्वाध्याय कल्पवृक्ष के तुल्य है। अतः स्वाध्याय आत्मकल्याण में अति उपयोगी है। प्रस्तुत पुस्तक में इतिहास के कुछ पृष्ठों को तथा उनके तत्त्वों का दिग्दर्शन कराया गया है। मुख्य रूप से श्री शत्रुञ्जय तीर्थ की गौरवगाथा का वर्णन करके उनके उद्धारों का शत्रुञ्जय माहात्म्य पुस्तक के आधार पर संक्षिप्त वर्णन किया है। श्री गिरनार तीर्थ पर नेमीनाथ परमात्मा की प्रतिमा का इतिहास भी प्रस्तुत किया है। तपागच्छ के अधिष्ठायकदेव श्री मणिभद्रवीरजी का विस्तृत जीवन चरित्र देकर उनके प्रभाव का वर्णन किया है। इसी के साथ 20 तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ के अधिष्ठायकदेव श्री भोमियाजी का आद्योपान्त जीवन चरित्र भी इसी पुस्तक में दिया है। इसके अतिरिक्त संक्षेप से अन्य भी प्रेरणा प्रसंग दिए हैं।' प्रस्तुत पुस्तक में शत्रुञ्जय उद्धार लिखने के लिए पू. श्री हेमरत्नसूरिजी म., पू. श्री रत्नसेनसूरिजी म. द्वारा लिखित पुस्तक का आधार लिया है। श्री मणिभद्रवीरजी का जीवन चरित्र पू. श्री महाबोधिविजयजी म. द्वारा लिखित गुजराती पुस्तक 'जय माणिभद्र' तथा श्री भोमियाजी का जीवन पू. श्री जिनोत्तमसूरिजी म. द्वारा लिखित पुस्तक के आधार पर लिखा है। गुजराती भाषा में जैन इतिहास का साहित्य बहुत प्रकाशित है। परन्तु हिन्दी भाषा में बहुत कम मिलता है। हिन्दी भाषी लोग प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर लाभान्वित हो इसी लक्ष्य को लेकर यह पुस्तक लिखी है। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठों में जैन धर्म विषयक कर्म सिद्धान्त सम्बन्धी लगभग 200
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy