________________ वाराणसी नगरी में महसेन नाम के राजा राज्य करते थे / उनकी रानी का नाम यशोमती था / उनका एक पुत्र था जिसका नाम चन्द्रशेखर था / योग्य वय होने पर राजा ने उसे युवराज पद से विभूषित किया / चन्द्रशेखर धर्मपरायण, सुसंस्कारी तथा देव, गुरु, धर्म पर दृढ़ श्रद्धा रखने वाला था / एक बार महारानी तथा युवराज राजदरबार में सिंहासन पर बैठे हुए थे कि नगर के पाँच प्रमुख श्रेष्ठी राजा के पास उपहार लेकर आए / उन्होंने महाराजा को प्रणाम किया और भेंट देकर यथोचित् स्थान पर बैठ गए / __राजा ने पूछा- कहिए श्रेष्ठीवर ! सब कुशल मंगल तो है ? एक श्रेष्ठी ने सिर झुका कर कहा-राजन ! आपके राज्य में सभी तरह से आनन्द मंगल है / महाराज ! हम बनारस के श्रावकजन सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा करने जाना चाहते हैं आपकी आज्ञा लेने के लिए हम सभी आए हैं / राजा ने कहा- हे श्रेष्ठीवर ! आपका विचार बहुत अच्छा है / राज्य की तरफ से यदि कोई सहायता चाहिए तो वह भी आपको प्राप्त हो जाएगी / तभी पास में ही बैठे हुए युवराज चन्द्रशेखर ने पूछा- श्रेष्ठीवर ! सम्मेतशिखरजी में आप किसको वन्दना करने के लिए जा रहे हो ? उन्होंने कहा- हे युवराज ! वैसे तो वह पवित्र तीर्थ बीस तीर्थंकरो की निर्वाण भूमि है परन्तु विशेष रूप से हमारे निकट उपकारी 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथजी ने 135 वर्ष पूर्व वहाँ मोक्ष प्राप्त किया है / हम उनका दर्शन वन्दन करने जा रहे हैं / राजा महसेन ने कहा- युवराज ! हम जिस गौरवशाली पवित्र वंश में उत्पन्न हुए हैं उसी वंश में ही पार्श्वनाथ भगवान का जन्म हुआ था / पिताजी! हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें उस वीतराग परमात्मा के वंश में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है / धन्य है मेरा जीवन, हाथ जोड़कर कुमार ने कहा- हे प्रभु ! क्या मुझे भी इस जीवन में आपको वन्दन करने का पुण्य अवसर प्राप्त होगा ? क्या मैं इतना भाग्यशाली हूँ ? युवराज की भावना को देखकर श्रेष्ठी बोले- हे युवराज ! यदि आपकी इतनी तीव्र भावना और इच्छा है तो आप भी हमारे साथ चलो / एक पंथ दो 48