________________ जीर्णोद्धार का कार्य तेजी से प्रारम्भ हो गया / सैकड़ों कारीगर तथा मजदूर काम में लग गए | जगत सेठ ने देवी की सूचनानुसार निर्वाण स्थलों पर उसी-उसी तीर्थंकर की देहरी बनवा कर उसमें उसी भगवान की चरण पादुकाएँ स्थापित कराई। पहाड़ पर जहाँ जलकुण्ड था वहाँ पर जलमन्दिर बनवाया / उसमें भव्य जिनालय बनवाकर शामलिया पार्श्वनाथ आदि प्रभु प्रतिमाओं की स्थापना की / विक्रम सम्वत् 1825 में माघ सुदी पंचमी के शुभ दिन शुभ मुहूर्त में भगवान महावीरस्वामीजी की 66वीं पाट परम्परा में विराजित पूज्य श्री धर्मसूरीश्वरजी के करकमलों से सभी देहरियों में चरण पादुका तथा जलमन्दिर में जिन बिम्बों की भव्य प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई / सम्मेतशिखर तीर्थ के 20 उद्धार तो वीस तीर्थंकरों के समय में ही हुए थे / 21 वाँ उद्धार जगत सेठ खुशालचन्द के हाथों सम्पन्न हुआ / इस उद्धार के पश्चात् प्राकृतिक उपद्रवों के कारण अनेक चरण पादुकाएँ क्षत-विक्षत हो गई / तब कलकत्ता, अजीमगंज, मुर्शीदाबाद, अहमदाबाद संघों के परस्पर सहयोग से जीर्णोद्धार होते रहे / अन्तिम जीर्णोद्धार साध्वीश्री रंजनश्रीजी की प्रेरणा से आचार्य श्री माणेकसागरसूरिजी की निश्रा में वि. सं. 2017 को सम्पन्न हुआ / - यह तीर्थ तन, मन को आच्छादित करने वाला आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है | इस तीर्थ के अधिष्ठायक देव भोमियाजी देव हैं, जिनके जीवन का * * इतिहास बहुत कम लोगों को मालूम हैं / तीर्थ वन्दना को जाने वाले यात्री पहाड़ पर चढ़ने से पहले सर्वप्रथम भोमियाजी देव के दर्शन करके जाते हैं / समकित धारी भोमियाजी देव तीर्थ यात्रियों की निर्विघ्न यात्रा में सहायक बनते हैं / यदि कोई रास्ता भूल जाए तो उसे श्वान के रूप में आकर मार्ग दर्शक बनते हैं और यदि कोई आशातना करे या दर्शन करके न जाए तो उसे मधुमक्खी के रूप में अपना परिचय देते हैं / तीर्थ रक्षक भोमियाजी देव कौन हैं ? कैसे बने ? इसका वर्णन चन्द्रशेखर रास में किया गया है | जो कि संक्षिप्त रूप से इस प्रकार है