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________________ इस तीर्थ की स्पर्शना भी नहीं कर सकते / जिसने इस तीर्थ की स्पर्शना नहीं की उसका अभी जन्म ही नहीं हुआ वह तो अभी माँ के गर्भ में ही माना जाता है / इन शब्दों ने माणेक शा के हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर दी / उसने गुरु चरणों में हाथ जोड़कर विनती की- गुरुदेव ! शत्रुञ्जय गिरिराज की महिमा सुनकर मेरा मन मेरे हाथ में नहीं रहा है / कब जाऊँ, कब दादा को भेंटू, कब पवित्र तीर्थ भूमि की स्पर्शना करूँ ? बस यही लगन लगी हुई है। गुरुदेव मेरी इच्छा है कि मैं आगरा से पैदल चलकर पालीताणा पहुँचु जब तक दादा का दर्शन नहीं होगा तब तक मेरा चारों प्रकार के आहार का त्याग, ऐसी आपश्रीजी मुझे प्रतिज्ञा दे दीजिए / ____ आचार्य श्री हेमविमलसूरिजी उसकी ऐसी शुभ भावना को देखकर हृदय से अनुमोदना करते हुए बोले, हे महानुभाव ! कहाँ आगरा और कहाँ पालीताणा / दोनों के बीच सैकड़ों मील का अन्तर | रास्ते में गर्मी, सर्दी सहन करनी पड़ेगी, अपरिचित मार्ग में अनेकों कष्टों तथा संकटों को सहन करना पड़ेगा अतः प्रतिज्ञा लेने से पूर्व चारों तरफ का विचार करो / गुरुदेव के शब्दों को सुनकर माणेक शा ने हाथ जोड़कर कहा- गुरुदेव ! आप जैसे समर्थ सूरि भगवान का हृदय से आशीर्वाद मेरे साथ हो तो मुझे क्या चिन्ता ? अन्न-पानी तो इस जीव ने अनन्तकाल में अनन्तों बार ग्रहण किया : है / गिरिराज की यात्रा करते हुए, तीर्थाधिराज का ध्यान धरते हुए यदि मेरे प्राण भी चले जाएँ तो भी मुझे कोई डर नहीं है। माणेक शा के दृढ़ संकल्प को देखकर गुरु महाराज ने आशीर्वाद सहित प्रतिज्ञा दे दी / वह भी शुभ दिन था आश्विन सुदि पंचमी का / चातुर्मास पूर्ण हुआ / दूज के दिन सेठ माणेक शा ने गुरु भगवन्त का.. आशीर्वाद लेकर जय शत्रुञ्जय - जय आदिनाथ नारे के साथ गिरिराज की .. तरफ प्रयाण किया / एक तरफ सेठ माणेक के उपवास आगे बढ़ने लगे और ही है। d
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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