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________________ विशेषता थी कि प्रदेश जाने पर भी अपने पूजा के वस्त्र सामायिक के उपकरण, जिनवाणी के स्वाध्याय हेतु धार्मिक पुस्तक अपने साथ ही लेकर जाता था / एक दिन भी धर्म कृत्य किए बिना नहीं रहता था / ___ आज के श्रावकों और जिनोपासकों के जीवन में उल्टी गंगा बह रही है / आज तो लोगों ने तीर्थ स्थानों को भी हिलस्टेशन और पिकनिक पोइण्ट बना दिया है / तीर्थ स्थानों में जाकर आराधना तो क्या, आशातना करके कर्मों के बन्धन कर लेते हैं | पूर्वकृत हुए पापों का प्रक्षालन तो नहीं करते अपितु दुष्कृत्य (अर्थात पत्ते खेलना, रात्रि भोजन करना आदि) करके नए पाप बान्ध लेते हैं / ___ आगरा में मुख्य जिनालय में पूजा करने के पश्चात् जैसे ही माणेक शा बाहर निकला कि उसे समाचार मिला कि परम उपकारी श्री हेमविमलसूरीश्वरजी आगरा में ही चातुर्मास हेतु विराजमान हैं / गुरु का नाम सुनकर माणेक शा का मनमयूर नाच उठा / उसके हर्ष का पार न रहा / वह तुरन्त उपाश्रय पहुँचा / गुरु वन्दन करके उनके सन्मुख बैठ गया / गुरु महाराज प्रवचन में शत्रुञ्जय महात्म्य ग्रन्थ का वाचन करते हुए शत्रुञ्जय तीर्थ की महिमा का वर्णन कर रहे थे / शत्रुञ्जय का नाम सुनते ही माणेक की अन्तर्रात्मा में आनन्द की लहरें उठने लगी। ___ माणेक शा ने भी अभी शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा नहीं की थी / उसने / विचार किया कि शत्रुञ्जय तो जब मेरे भाग्य में होगा तभी जाऊँगा / क्यों न हो कि मैं यहाँ पर चार महीने गुरु निश्रा में रहकर शत्रुञ्जय तीर्थ की महिमा सुनें / ऐसा दृढ़ निश्चय मन ही मन करके उसने अपना व्यापार मुनिमों को सौंप दिया और स्वयं चार महिने आगरा में रहकर प्रवचन श्रवण और आराधना में व्यतीत करने लगा। . गुरु ने प्रवचन में गिरिराज की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि चौदह राजलोक में शत्रुञ्जय जैसा कोई तीर्थ नहीं है / यह शाश्वत तीर्थ है, इस तीर्थ के कंकर-कंकर में अनन्ता आत्माएँ मोक्ष गई हैं / पापी और अभवी आत्माएँ 33
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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