________________ शब्द माणेक शा को आत्म निरीक्षण करने की गम्भीर प्रेरणा दे रहा था / कल रात्रि की घटना की स्मृति से उसका रोम-रोम कम्पायमान हो रहा था, उसका अन्तर हृदय रो रहा था, उसकी अन्तरात्मा उसे पुकार-पुकार कर कह रही थी कि हे माणेक ! तूने जो मुनि की आशातना की है उसका प्रायश्चित्त तुझे सभी के सामने करना पड़ेगा / अन्तर्रात्मा की आवाज को सुनकर माणेक शा खड़ा हो गया, उसकी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी, उसने दोनों हाथ जोड़कर, गुरु चरणों में मस्तक झुकाकर, सकल संघ समक्ष कल के दुष्कृत्य का प्रायश्चित्त माँगते हुए कहा हे भगवन् ! मैंने भयंकर दुष्कृत्य किया है, आप जैसे संयमश्रेष्ठ, समतामूर्ति श्रमण भगवन्त को मैंने बहुत संताप परिताप दिया है, कल परीक्षा के नाम से मैंने आपको बहुत दुःखी किया, महान कष्टकारी शारीरिक वेदना दी / हे प्रभु ! मूर्खतावश हो गया, यह दुष्कृत्य मुझे हजार-हजार बिच्छु काटने जैसी वेदना दे रहा है / मैं आज सकल संघ के समक्ष अपने इस पाप की माफी माँगता हूँ और अपने इस लज्जाजनक दुष्कृत्य की निन्दा करता हूँ | कृपया गुरुदेव ! मुझे प्रायश्चित्त देकर शुद्ध कीजिए / माणेक शा के निखालस हृदय को देखकर आचार्य भगवन् बोले- हे माणेक ! वास्तव में तुम पुण्यशाली हो, क्योंकि पुण्यशाली व्यक्ति को ही पापों * का प्रायश्चित्त करने का मन होता है / तुम्हारा पश्चात्ताप तुम्हें शीघ्र ही परमपद की प्राप्ति कराएगा / __माणेक सोचने लगा जिनशासन की कैसी भव्य विशेषता है, कैसी गजब की उदारता है, मेरे जैसे पापी और भारे कर्मी को भी गुरु भगवन्त पुण्यशाली कहकर बुला रहे हैं | माणेक ने आँखों के आँसुओं से गुरु चरणों का प्रक्षालन किया और गुरु द्वारा दिए हुए प्रायश्चित्त को स्वीकार किया / पाप के भार से हल्के हुए माणेक शा ने पुनः विनती के स्वर में आचार्य भगवन को कहा- गुरुदेव ! मेरे मन एक और प्रश्न है क्या आपश्री उसका 31