________________ शुभ समाचार सुनकर आनन्दरति की साढ़े तीन करोड़ रोमराजी प्रसन्नता से नाचने लगी / माँ जिनप्रिया को जब यह समाचार मिला तो उसके भी आनन्द / का पार न रहा / माणेक शा शुभ भावों को लेकर सीधा गुरुदेव के चरणों में पहुंचा और गुरु को वन्दन करके अपने घर पधारने की विनती की / गुरुदेव ने भी भावी लाभ को जानकर विनती को स्वीकार किया / ___ माणेक शा ने गुरुदेव के पगले कराने हेतु अपनी विशाल हवेली को नववधू की भाँति सजा दिया, आसोपालव के तोरण बान्धे, आँगन में सुन्दर रंगोली की, पूरे मुहल्ले में सुगंधी जल का छिड़काव किया / तत्पश्चात् गुरुदेव को लेने के लिए सामने गया / सकल संघ सहित ज्ञानी गम्भीर आचार्य भगवन / माणेक शा के भवन में पधारे | सभी ने गहुँली आदि कृत्य करके विधिपूर्वक गुरुवन्दन किया / धर्मलाभ का आशीर्वाद देकर गुरुदेव यथोचित् स्थान पर विराजमान हुए / मंगलाचरण के पश्चात् धीर गम्भीर मधुर स्वर से धर्म देशना प्रारम्भ की / कल की घटना और प्रातःकाल की विनती के पीछे रहे हुए भाव सूरिजी के समक्ष थे / उन्होंने दिव्य देशना देते हुए कहा- प्रिय बन्धुओं ! प्रत्येक मानव के जीवन में पाप होने की सम्भावना है, क्योंकि मानव मात्र भूल का पात्र है / परन्तु यदि उन भूलों को, पापों को स्वीकार करके पश्चात्ताप के अश्रुओं के साथ प्रायश्चित्त लिया जाए तो भयंकर से भयंकर पाप नष्ट हो जाते हैं / जैसे टूटे हुए तन्तु जोड़े जा सकते हैं, अशुचि से भरे हुए पाँव पानी से साफ हो जाते हैं वैसे ही पश्चात्ताप की पावक में पाप कृत्य भी समाप्त हो जाते हैं / __हे महानुभावों ! पापियों के पाप का प्रक्षालन करने वाला यह जिनशासन है | चोर, खूनी, दुराचारी आदि बड़े-बड़े नराधम भी इस जिनशासन के प्रभाव से तर गए हैं। गंगा के प्रवाह समान अस्खलित प्रवाहित हो रही उपदेश धारा का एकेक 30