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________________ अपनी भावना प्रगट की और बोली बेटा ! गुरुदेव की उग्र तपस्या के अन्तिम / दिन चल रहे हैं तू एक बार उनको वन्दन करके आ और पारणे के प्रसंग पर . अपने घर पधारने की विनती करके आ / यदि अपना भाग्य जोरदार होगा तो लाभ मिल जाएगा। वैसे तो यतियों के संग से माणेक शा नास्तिक जैसा तथा संवेगी साधुओं का द्वेषी बन गया था परन्तु इस काली बादली के बीच एक मातृभक्ति का गुण उसमें था / ___ माँ के कहने से माणेक श्री हेमविमलसूरिजी को विनती करने के लिए चल तो पड़ा, परन्तु उसका द्वेषी मन पुनः तूफान करने लगा / एक तो पहले ही तपागच्छ के साधुओं के प्रति उसे असद्भाव हो गया था / उसमें अपने कुलगुरु सूरि भगवन्त के पदार्पण से वह अधिक उग्र और व्यग्र बन गया था / उसके हृदय से आज मानवता का भी दिवाला निकल गया / गुरु के प्रति भी गुरुत्व भाव नहीं रहा, उसने श्री हेमविमलसूरिजी की कठोर अग्नि परीक्षा लेने का .. निश्चय किया / गुरु की अग्नि परीक्षा लेने के लिए चलता-चलता क्षिप्रा नदी के तट पर पहुँच गया / आचार्य भगवन को ढूँढता-ढूँढता गन्धर्व श्मशान में पहुँच गया / श्मशान भूमि से थोड़ी दूरी पर हेमविमलसूरीश्वरजी को ध्यानस्थ मुद्रा में अडोल, अकम्प खड़े हुए देखा, उनको ध्यानस्थ मुद्रा में चलायमान करने के लिए परीक्षा हेतु आए माणेक ने श्मशान भूमि से एक जलती हुई लकड़ी को उठाया और गुरुदेव की दाढ़ी के साथ लगा दिया / जिससे उनकी दाढ़ी के बाल जलने लगे / एक तरफ माणेक शा के हृदय में क्रोध तथा द्वेष की अग्नि जल रही थी तो दूसरी तरफ सूरिजी के हृदय में ध्यानाग्नि जल रही थी, तीसरी तरफ दाढ़ी के बाल जल रहे थे / परन्तु कमाल-कमाल, कैसी दृढ़ता / दाढ़ी के बाल जलने पर सूरिजी 28
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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