________________ इन कर्मों को जानने के बाद कर्म रोग का निदान ही नहीं प्रत्युत कर्मों से मुक्त बनने का उपचार भी बताया गया है / प्रश्न- 188. कर्म स्वरूप की विचारणा पश्चात् अब क्या-क्या लाभ होंगे ? उत्तर- 1. कर्म स्वरूप के चिन्तन के बाद जीव नए कर्मों के बन्ध को समाप्त कर पुराने कर्मों को समाप्त करने के लिए सम्यक् दर्शनज्ञान-चारित्र-तप की आराधना अधिक से अधिक करेगा / 2. आत्मिक गुणों का प्रगटीकरण होगा / 3. आत्मा विभावदशा से स्वभावदशा की ओर सन्मुख बनेगी। 4. प्रत्येक शुभक्रिया भावपूर्वक भी करेगा। 5. सुन्दर आराधना द्वारा घातीकर्मों के नाश का ही प्रयास करेगा / 6. अन्त में घाती-अघाती दोनों प्रकार के कर्मों को क्षपित कर मुक्ति सुख का भोक्ता बनेगा / प्रश्न- 189. घाती कर्म किसे कहते हैं ? वह कौन-कौन से हैं ? आठों कर्मों को दो भागों में विभाजित किया जाता है / 1. घाती कर्म, 2. अघाती कर्म / घाती कर्म- जिनका सीधा सम्बन्ध आत्मा के साथ होता है तथा जो आत्मा के गुणों का घात (नाश) करते हैं उन्हें घाती कर्म कहते हैं वह 4 हैं / 1. ज्ञानावरणीय कर्म, 2. दर्शनावरणीय कर्म, 3. मोहनीय कर्म, 4. अन्तराय कर्म इन चारों घाती कर्मों के नाश से ही केवलज्ञान की प्राप्ति होती है / इन चारों में से सर्वप्रथम मोहनीय कर्म का नाश होता है तत्पश्चात् शेष तीनों कर्मों का / प्रश्न- 190. अघाती कर्म किसे कहते हैं ? वह कौन-कौन से हैं ? उत्तर 231