________________ 2. हे चेतन ! तू वास्तव में अनन्तदर्शनी है / परन्तु वर्तमान में अन्धत्व, बहिरत्व, पेरेलीसीस-निद्रादि का अनुभव कर रहा है उसका कारण दर्शनावरणीय कर्म का विपाक है / 3. हे आत्मन् ! तू वास्तव में परमानन्दी है तो भी तू शारीरिक और मानसिक सुख-दुःख का अनुभव कर रहा है उसका कारण है वेदनीय कर्म का विपाक | 4. हे आत्मन् ! तू तो वीतरागी है, तो भी इस समय वर्तमान में राग-द्वेष में फंसा हुआ है इसका कारण है मोहनीय कर्म का विपाक / प्रश्न- 187. चार कर्मों को बताने के बाद अन्य 4 कर्मों से आत्मा को कैसे स्थिर कर सकते हैं ? उत्तर- हे चेतन ! तू तो अक्षय-अखण्ड जीवन का मालिक है तो भी जन्म और मरण के चक्र में पड़ा हुआ है इसका कारण आयुष्य कर्म का विपाक है। हे आत्मन् ! तू तो अरूपी-अनामी होने पर भी मनुष्य आदि रूपों को प्राप्त कर रहा है / लोगों का उपकार करने पर भी अप्रिय बना हुआ है / बहुत काम करने पर भी अपयश मिलता है / इन सबका कारण नामकर्म का विपाक है / / हे चेतन ! तू तो अगुरु-लघु (ऊँच-नीच के भेद रहित) है तो भी कभी ऊँच कुल में तो कभी नीच कुल में जन्म ले रहा है उसका कारण है गोत्रकर्म का विपाक ! हे आत्मन् ! तू तो अनन्त शक्ति का मालिक है / तो भी दरिद्रता, अशक्ति, अनुत्साह का अनुभव कर रहा है उसमें कारण है अन्तराय कर्म का विपाक ! 230