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________________ श्रेणिक महावीर भगवान का भक्त था इसलिए नरक में नहीं गया परन्तु शिकार के शौकीन होने से हरिणी को तीर मारा हरिणी के पेट में रहा बच्चा भी निकल कर मर गया / हरिणी और बच्चा दोनों मरण की शरण को प्राप्त हुए / दो जीवों की हिंसा देख पश्चात्ताप तो दूर रहा उल्टा स्वयं को शाबासी देते हुए मैं कैसा उत्तम शिकारी ! एक तीर से दो को खत्म किया स्वयं के पाप की प्रशंसा करने से नरक में ले जाने वाला निकाचित कर्म बान्धा / अतः पाप करते समय सावधान रहना जरूरी है / खाते समय भोजन की, पहनते समय वस्त्र की, मौज-शौक की वस्तुओं की भूल से भी प्रशंसा न हो जाए, ध्यान रखें / स्कन्धक मुनिवर ने पूर्व भव में चीबड़े के फल की छाल उतार उसकी प्रशंसा की तो अगले भव में साधु बने तो शरीर की चमड़ी उतारनी पड़ी / प्रश्न- 183. जैन दर्शन का कर्मवाद किसकी प्रेरणा देता है ? उत्तर- जैन दर्शन का कर्मवाद भव्य पुरुषार्थ की प्रेरणा देता हैं | कर्म में जो लिखा है वही होगा ऐसी निष्क्रियता का प्रेरक कर्मवाद नहीं है परन्तु सक्रिय बनाने वाला है / जैनधर्म का कर्मवाद हमें जीवन जीने की सही कला सिखाता है / दु:ख में से बचने का और सुख प्राप्त का मार्ग दिखाता है / विनाश की खाई में से निकाल कर ऐवरेस्ट शिखर तक पहुँचने में सहायता करता है। कर्मवाद कहता है कि हे आत्मन् ! तुझे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है / जब तक कर्माणुओं का शान्ति काल चल रहा है तब तक बाजी तेरे हाथ में है / तू जैसा चाहे वैसा भावि निर्माण कर सकता है | तेरे जीवन का भाग्यविधाता तू स्वयं है / प्रश्न- 184. अबाधाकाल का श्रेष्ठ उपयोग किसमें करना चाहिए ? 228
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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